पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१५४

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(८) सो कुछ कारमी पदो और सन् १८४० में तहसीली चूल में हिंदी को प्रवेशिका परीक्षा पास को। इस परीक्षा में प्रति भर इनका नंबर पहिला रहा। सन् १८७०१ में प्रागरा कालेज अंगरेजी मिडिल की परीक्षा पाम की और इसमें भी सब उटी- परीक्षितों में प्रथम पद प्राप्त किया। इसके एक ही साल बाद स- १८८०६० में इन्होंने मेट्स परीक्षा पहिली गी में पास की। उक्त परीक्षा पास करने के महीने बाद सन् १८८१ में प्राण फलक चले गए पौर यहां ६) मासिक पर सेंसस कमिश्नर स्थायी दफ्तर में नौकर हुए । इसी नौकरी में इन्हें शिमला जाक हिमालय का उदन वैभव देखने का अवसर प्राप्त हुमा । वहां में लीटने पर कुछ दिन के अनंतर इलाहाबाद में लाट साहिब के दफ्त- में ३०) मासिक पर नियुक्त हुए । इस दफ्तर के साथ पाठक जा के कई येर नैनीताल जाने का सौभाग्य हुआ। सन् १८९८ ई० मै उ कि इनका येतन २०० मासिक था इनकी आगरे को बदली हुई भी वहां से सन् १९०१ में ३०० मासिक घेतन पर इरीगेशन कमिशन के सुपरिटेंडेंट नियुक्त हुए । कमिशन के अंत (सं० १९०३) तक ये उसी के साथ रहे। तदनंतर एक वर्ष पर्यंत भारत गवर्नमेंट के दफ्तर में डिपटी सुपरिटेंडेंट और सुपरिटेंडेंट रहे । फिर उस पद को त्याग तीन मास की छुट्टी लेकर काश्मीर को सैर को पधारे।पौर यहाँ से लौट आने पर "कश्मीर सुखमा" नामक सुललित काय रचापाठक जो सरकारी काम बड़े परिश्रम और सावधानी से करते हैं और उत्तम अंगरेजो लिखने के लिये ख्यात है। सन् १८९४-१९ को प्रांतीय इरीगेशन रिपोर्ट में अापकी प्रशंसा छपी है । इस समय ये युक्त प्रदेश के लाट साहेब के दफ्तर में ३००) सुपरिटेंडेंट हैं। मासिक पर