पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१५६

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(२६) महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी हुत दिन हुए चैनसुख नामक एक सरयूपारी व ब्राह्मण काशी में संस्कृत पढ़ने पाए। ये शिव के पास मंडलाई गाँव में एक उपाध्याय के या अध्ययन करने लगे। उपाध्याय जी की के संतति न होने के कारण चैनसुख हो उनको सम्पत्ति के उत्तराधि कारी हुए । इनसे कई पीढ़ी पीछे शारंगधर और शिवराज दो भा हुए । शारंगधर ने खजुरी सारनाथ आदि कई गांवों की ज़मींदा लेकर खजुरी में अपना निवास स्थान नियत किया। शिवराज उपा ध्याय के तीन पुत्र हुए, जिनमें रामप्रसाद सब से छोटे थे। इन समय में केवल खजुरो की ज़मीदारी हाथ में रह गई थी। राम प्रसाद के पाँच पुत्र हुए । जिनमें रुपालुदत्त सबसे छोटे थे। कृपा लुदत्त ज्योतिप-विद्या में निपुण हुए और इनके हस्ताक्षर भी मर होते थे। फीस कालेज की भीतों पर अंकित अक्षर इन्हों के लिये सुप हैं । पंडित सुधाकर जो इन्हीं कृपालुदत्त के पुत्र हैं। स्मरण रहे कि पंडित कृपालुदत्त स्वयं भाषा काव्य के घड़े प्रेमो तथा कवि थे। जिस समय सुधाकर जी का जन्म हुमा इनके पिता मिर्जापुर में थे। इनके चाचा दरवाजे पर येठे थे। डांकिप ने पाकर सुधाकर नामक पत्र उनके हाथ में दिया तय तक भीतर से लड़के के जन्म होने की खबर प्रारं। मापने कहा कि इस लड़के का नाम सुधाकर हुमा । इनका जन्म संयत् १९१७ चैत्रमा चतुर्थी सोमयार को हुमा था। द्विवेदी जी को ९मास की अवस्था दात ही इनकी माता का देहांत हो गया इसलिये इनके लालन पालन का मारनको