पदो पर पड़ा। इनके पिता घर पर नहीं रहते थे और घर र का इन पर विशेष प्यार था। इसीसे आठ वर्ष की अवस्था किनकी शिक्षा की ओर किसी ने कुछ भी ध्यान न दिया । सके बाद जब इनके घड़े चचा ने इन्हें पढ़ने को बैठाया तो इन्होंने शेड़े हो समय में बहुत उन्नति कर दिखलाई । यक्षोपयोत होते ही नको धारणाशक्ति ऐसो तीन हो गई कि जो पद्य एक बार देखा ठस्थ हो गया। इनके वड़ों ने ता सोचा कि इन्हें कुछ व्याकरण पढ़ाकर कथा पुराण वाचने योग्य बना दिया जाय, पर इनकी तबीयत ज्योतिष पत्र में लग गई और केयल लीलावती पढ़ कर ये गणित के बड़े बड़े प्रश्नों को सहज में हल करने लगे। इनकी ऐसी तीव्र बुद्धि देख कर पंडित वापूदेव शास्त्री इनसे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने हौस कालेज के प्रिंसपल ग्रिफ़िथ साहिब से इनकी बड़ी प्रशंसा को। इससे इनका उत्साह और भी बढ़ गया । इनके बड़ों ने गणित के विशेष अध्ययन से इन्हें रोकना चाहा पर ये गणित के रंग में से रंग गए थे कि उस विद्या में पूर्ण पांडित्य प्राप्त किया। योंही ज्योतिष विषय पर बातें होते होते एक दिन इनका वापूदेव शास्त्री से कुछ झगड़ा हो गया जिससे दोनों में कुछ वैमनस्य हो गया। पंडित सुधाकर जा ज्योतिष के जैसे पंडित हैं सो तो सब जानते हैं परंतु अपनी मातृभाषा हिंदी के भी माप अनन्य प्रेमो और बड़े विद्वान हैं। आप तुलसीदास, सूरदास, कबीर, तथा अन्यान्य भाषा के शिरोमणि कवियों के कायों में अच्छा प्रवेश रखते हैं। पाप ऐसी सरल हिंदी के पक्षपाती हैं जो कि सहज हा सर्वसाधा. रण की समझ में मा सके। अापने सब मिलाकर हिंदी भाषा में कोई १७ पुस्तकें रची पौर सम्पादित की हैं। माप बावू हरिश्चंद्र जो के प्रिय मित्रों में से हैं।
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१६१
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