पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१६२

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(८८) सुधाकर जो की रहन सहन सादी, स्वभाव सौधा, और चार सर्वप्रिय है। आपका सिद्धांत है कि कोई छोटा बड़ा नहीं है सब एक ही से जन्मते और एक हो से मरते हैं। ईश्वर ने जिस शिर पर भार रख दिया है उसे अंत तक नियाह ले जाना ही बड़ा प्पन है। आप इस समय कोंस कालेज में गणित के प्रोफेसर प्री- काशी नागरीप्रचारिणी सभा के सभापति है। ग्रापकी विद्वता पर मुग्ध होकर गवर्नमेंट ने पापको महामहोपाध्याय को उपाधि भूपित किया है। आपको सुकीर्ति यारोप तक फैली हुई है।