पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१७१

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मार विषय पर "दपानंद तिमिरभास्कर" नाम को एक पुस्तक रसो। इस पुस्तक का सनातन-धर्मापलंयो लोगों में पड़ा पादर पारससे इनका उत्साह बढ़ गया पार फिर ये पुस्तम-रचना में संउग्न हुए पार लोगों को पनुसार उन्होंने कर पुस्तकें रची। पुदिनों के बाद मापक ध्यान में पाया कि यदि संस्कृत पुस्तकों का भापानुपाद करके हिंदी-साहित्य का भंडार भरा जाय को शुत हो पच्दा हो। इससे मातृभाषा की उन्नति होगो और टोगों का उपकार भी होगा। यह पिचार कर माप इस पोर मुके पोर पापने पय तक संमत के ३० अंधों का अनुयाद फिया है। यं सत्र पुस्तकें प्रायः व्यंकटेयर प्रेस में छपी हैं। इन्होंने शुरु पद पर मिध भाप्य नाम से भाषा भाप्य रचा है । यह पड़ा ही विटक्षय पर अपने ढंग का एक ही प्रथा है। इसके सिवाय इन्होंने जाति निण्य, पटादश पुराण, सोता पनयास नाटक, भक्क माल प्रादि भाग के कर ग्रंप स्वयं लिये हैं। पाप सनातन हिंदू धर्म के स पक्षपाती पार हिनेचुरस लिये पाप धार्मिक विषय पर व्याख्यान देने की भी मच्छी शक्ति रयते हैं। माप पंजाब में

पशायर तक, दक्षिण में हैदराबाद तक व्याग्यान देते हुए समय

समय पर देशाटन किया करते हैं। आपने कई एक सभाओं में पार्यसामाजिक पंदितों से शास्त्रार्थ करके जय पाई है। इन्हीं सब कारणों में भारतधर्म महामंडल में इनका बड़ा मान है। । वहां से इन्हें विद्यावारिधि और महोपदेशक का पद प्राप्त है। कटकने के कान्यकुब्ज मंडल से प्रापको पक स्वर्णपदक भी मिला है। इस समय आप मुरादाबाद में रहते हैं। निज व्यय से चलने वालो कामेश्वर नाथ नाम की पाठशाला में आप पढ़ाते हैं और जो । शेष समय वचता है उसमें संस्कृत के अंधों का भापानुवाद करके अपने अमूल्य जीवन को सदुपयोग में लगा रहे हैं ।