(१०) पंडित श्यामविहारी मिश्र, एम. ए., SMILE 4. डित श्यामयिहारी मिथ का जन्म एक बड़े ही प्राचीन और प्रतिष्ठित कान्यकुब्ज ब्राह्मण यंश में हुआ है। बहुत दिन हुए विश्वामित्र, कात्यायन और कीलक ऋषियों के वंश में एक बड़े विद्वान अनंतराम हुए जिन्हें काशी के पंडितों ने "मिश्र की उपाधि दी। तभी से इस वंश के लोग इस उपाधि से भूपित हैं। इनके पीछे मिश्र चिंतामणि हुए जिन्होंने संस्खंत में कई अन्ध बनाए । एक समय एक राजा ने इन्हें एक लाख रुपया देकर सगर्व यह कहा- "पापको मुझ सा दानी न मिला होगा।" यह वाक्य मिथ जी को असह्य हुआ। उन्होंने अपने पास से एक लाख रुपया और मिला कर दोनों लाख रुपए राजा पर से निछावर करके बांट दिए. और यह कह कर यहाँ से चल दिए-- "आपने मुझ सा त्यागी भी न देखा होगा। इसी दिन से इस वंश में दान न लेने की मर्यादा स्थापित होगई । क्रमशः इस वंश की देवमणि. सिद्धि और हीरामणि ये तीन शाखाएँ हुई, जिनमें से पंडित श्यामविहारो मिश्र प्रथम शाखा के अंतर्गत है। इस शाखा के लोगोंने क्रमशः बहुत कुछ उन्नति की और बड़े बड़े मकान बनवाए तथा बादशाही सेवा में वे चकलेदार के उच्चपद तक पहुँचे। हमारे चरितनायक के पूज्य पिता मिथ बालदच जी बड़े ही चतुर और बुद्धिमान मनुष्य थे। भाषा-कविता से उन्हें बड़ा शौक था। वे कवि भी अच्छे थे। पिता की ऐसी भाषा-
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२१४
दिखावट