पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२१९

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(२१) उसका शरीर पात हो गया। इसके यनंतर इन्हें ५ कन्याए और दो पुत्र हुए जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र जिसका जन्म सन् १८९९ में हुआ था. सन् १९०७० में परलोकगामी हुमा । यह लड़का बड़ा होनहार था और इसकी मृत्यु से मिश्र जी को बड़ा दुःख हुमा । दूसरं पुष पादित्यप्रकाश का जन्म मार्च सन् १९०४ ई० में हुआ। यह भी होनहार प्रतीत होता है। यह लिखा जा चुका है कि पंडित शुकदेवविहारी मिथ इनके गोटे भाई हैं। इनका जन्म सन् १८७१ ई. में हुआ, विद्याध्ययन में सन्यक प्रशंसा के साथ अनेक परीक्षाएं पास करके ये इस समय हरदोई में मुंसिफ हैं। दोनों भाइयों में इतना अधिक सौहार्द है कि इन्हें एक प्राण दो शरीर कहना अनुचित न होगा । वे प्रायः मिलकर ग्रंथ या लेखादि लिखा करते हैं। आज तक भाषा में जितने ग्रंथ या लेख इनके छपे हैं सब पर दोनों भाइयों के नामां- कित हैं। इसका कारण यह है कि दोनों भाई मिलकर लिखते हैं और सब चीज़ों में दोनों को कृति वर्तमान रहती है। इस अवस्था में एक को हिंदी-रचना के संबंध में जो कुछ लिखा जाय उसे दोनों के संबंध में समझना चाहिए । इस युगल जोड़ी ने हिंदी में १३ ग्रन्थ लिखे या संपादित किए हैं। इनमें सबसे उपयोगी 'संक्षिप्त इतिहासमाला" नाम को एक ग्रंथावली है जो २०, २२ भागों में समाप्त होगी । इसके दो भाग छप चुके हैं। दूसरा उप- योगी ग्रंथ हिंदी-साहित्य का इतिहास है । यह बहुत बड़ा ग्रंथ होगा । जिस समय यह प्रकाशित होगा हिंदी पठित-समाज को इनको विद्या, बुद्धि, गवेपणा और समालोचक शक्ति का पूरा अनुभव हो जायगा। तीसरा उपयोगी ग्रंथ भूपण-ग्रंथावली है जो नागरीप्रचारिणो ग्रंथमाला में क्रमशः छप रहा है। चाथा ग्रंथ लवकुश चरित्र है जिसे छपे कई वर्ष हो चुके । छोटे ग्रंथों में पुत्रशोक पर जो कविता इन्होंने की है वह अत्यंत सुंदर है। 4 - -