पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/३०

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( १३ ॥ विद्यमान है और उसमें मिडिल तक नागरी को शिक्षा दी जाती है। इसमें ८५० मासिक सहायता गवर्नमेंट भी देती है। नागरी- प्रचार के संबंध में चंदे से जो रुपया आता था उसे ये नगर के रसों के पास जमा रखते थे और यहाँ से उसका जमा खर्च होता था। इन्होंने सन् १८९४ ई० में स्वयं ठेोटे लाट के पास दफ्तरों में नागरी प्रचार के लिये पक मेमोरियल भेजा था और जब काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इस विषय में प्रयत्न किया लेब भी इन्होंने समुचित सहायता दोथी। ६५ वर्ष से भी ऊपर अवस्था हो जाने पर पंडित गोरोदत्त चुप चाप हो कर नहीं बैठे। जहां कहीं मैला होता अपना नागरी प्रचार का झंडा लेकर जाते पार नागरी भाषा की उन्नति पर व्याख्यान देते। प्रत्येक सभा सोसायटी में जाकर नागरी प्रचार का गीत गात इनसे लोग राम राम, प्रणाम के बदले "जय नागरी को कहा करते थे। इसी प्रकार लड़के भी हल्ला करते हुए इनके पीछे चलते थे। इनका देहांत ता०८ फ़रवरी सन् १९०६ ई० को हुपा। इनकी समाधि मेरट में सूर्यकुंड पर है पार उस पर मोटे अक्षरों में "गुप्त संन्यासी नागरी प्रचारानन्द" अंकित है।