(५) मिस्टर फ्रेडरिक पिंकाट । रतो कई योरोपनिवासी विद्वान् पेसे हो गए हैं जिन्हों यों ने हिंदी साहित्य में विज्ञता प्राप्त की है और अपनी भाषा द्वारा उसकी सेवा भी की है परंतु इनमें पिंकाट साहब ही ऐसे थे जिन्हें हिंदी लिखने का व्यसन था और जो अपने भारतयासी मित्रों से प्रायः हिंदी ही में पत्र-व्यवहार करते थे। भारतवर्ष की ओर इनका बड़ा स्नेह था पौर इसकी भलाई का अवसर पाने पर वे कभी उससे नहीं चूकते थे । भारतवर्ष से हज़ारों कोस दूर रह कर इससे स्नेह करना इनके महत्व को सिद्ध करता है। इनका जन्म सन् १८३६ ई० में इंगलैंड में हुआ था। इनके पिता की आर्थिक अवस्था प्रच्छी नहीं थी मतपय उनके द्वारा इन्हें यथोचित शिक्षा नहीं प्राप्त हुई । प्रारम्भ में इन्होंने एक स्कूल में पड़ा पर धनाभाय के कारण पढ़ना शीघ्र ही छोड़ना पड़ा और सेया-गृति प्रहण करनी पड़ी । पहिले पहिल इन्होंने पक छापेम्पाने में कम्पो- ज़िटरी का काम प्रारंभ किया पार कुछ काल के अनंतर प्रफ़रीडर नियत हुए । यहीं पर इन्हें संहत पढ़ने की इच्छा उत्पन्न हुई। इस भाषा का अध्ययन ये अंगरजी दी के यारा कर सकते थे परंतु उप योगी पुस्तक का मूल्यवहुत था इसलिये ये उन्हें सहज मैं न मिल मौ। यही पेशा के बाद एक मित्र की सहायता से कुछ पुस्ता प्राप्त दी गई पर उन्होंने मंस्टन पदना प्रारंभ कर दिया पार कुछ यो परिश्रमपनतर उनमें पछी योग्यता म करठी यादी विधा में किसाथ दो मापदमी सासरिक प्रयन्या में भी
पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/३१
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