पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/३५

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उन्नति हुई। कुछ काल के पीछे ये एलन कम्पनी के छापेक्षाने के मैनेजर नियत हुए। इस पद पर रह कर इन्होंने कई अच्छी अच्छी पुस्तकें लिनों । देशी भाषामों में पहिले पहिल इन्होंने उर्दू का अध्य- यन किया और उसके अनंतर गुजराती, बँगला, तामिल, तैलंगी, मलायलम, और कनारी भाषाएं सोखो पीर सब के अंत में हिंदी की ओर इनका पनुराग हुआ। बस फिर क्या था हिंदी पढ़ने हो को देर थी कि और सब भाषाओं पर का अनुराग एक इसी पर पारुष्ट होगया। हिंदी पर आपको प्रीति इतनी बढ़ो कि माप अनेक हिंदी समाचार पत्रों के पाठक वन गए और कभी कभी लेख भी उनमें देने लगे, होते होते इनकी सुकीर्ति चारों मोर फैलने लगी। इनकी बनाई पुस्तकें सिविल सर्विस परीक्षा में नियत हुई पार हिंदी के विषय में इनकी बातें प्रामाणिक मानी जाने लगा। अच्छी अच्छी हिंदी पुस्तको पर ये अपनी सम्मति लिख कर विलायती पत्रों में उपवाते, इस प्रकार भारतवर्ष को हिंदी रसिक मंडली के हृदय में भी इन्होंने स्थान पालिया। मृत्यु के कुछ वर्ष पहिले गिलबर्ट और रिपिंगटन कम्पनी के पूर्वी विभाग के ये मंत्री नियत हुए और अंत काल तक पहों काम करते रहे। सन् १८९५ ईसवी में ये भारतचप में रीक्षा पास की खेती की उन्नति कराने के उद्देश्य से आए । पर होनी बड़ी प्रचल होती है। जिस भारतवर्ष से आपको इतना प्रेम था यहीं उसोको गोद में पापकी आत्मा ने शांति प्राप्त की। इसी रोहा घास की खेती के उद्योग में वे लखनऊ आए और वहां सात फरवरी १८९६ को इन्होंने इसी देश की भूमि में अपने प्राण छोड़े। इन्होंने अपना विवाह २३ वर्ष की अवस्था में किया। इनकी स्त्री का स्वर्गवास सन् १८८८ ई. में हुआ, संतति इनको केवल एक कन्या हुई । इनके बनाए या समादित ७ प्रन्य हैं। कई वर्षो तक इन्होंने एक व्यापारसंबंधी अवधार अंगरेजी उर्दू और हिंदी में निकाला था। ये स्वभाव के बड़े सीधे पार चरित्र के बड़े पके थे।