(२) भाषा हो जायगी और उसके सैंकड़े लेखक होंगे और उसमें हजारों ग्रंथ लिखे जायगे । पैसे बड़े बड़े काम यांही साधारणतः हो जाते हैं। कभी कभी तो जो काम खिलवाड़ में किए जाते हैं ये समय पाकर देश में भारी से भारी उलट फेर करने में समर्थ होते हैं। यही अवस्था लल्लू जी लाल के उद्योग की भी हुई। एक साधारण ग्रंथ लिख कर उन्होंने वह काम किया कि जिसका परिणाम बड़ा प्रभावोत्पादक हुआ और जिसके कारण पाज दिन वे हिंदी गद्य के जन्मदाता को उपाधि से अलकृत हैं। इनके पीछे बहुत घर्षों तक हिंदी साहित्य का मैदान खाली रहा, कोई भी ऐसा प्रदीप प्रज्वलित न हुआ जो अपनी प्रकाश-किरणां से अविद्या के अंधकार को दूर कर उस मैदान को सुशोभित करता। इसके कोई तीस चालीस वर्ष पीछे राजा शिवप्रसाद, राजा लक्ष्मण सिंह और भारतेंदु हरिश्चंद्र रूपी चमकते हुए नक्षत्रों का साहित्य-मंडल में उदय हुआ । यद्यपि इनमें सब के पहिले राजा शिवप्रसाद का उदय हुमा पर ध्रुव स्थान पर स्थिर होने का गौरव भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को प्राप्त हुना। इन्होंने हिंदी-भाषा में उस संजीवनी शक्ति का संचार किया कि जिससे यह दिनों दिन बढ़ती चार उप्रति करती गई पौर आज दिन उसका नभ-मंडल अनेक नक्षत्रों से परिपूर्ण - हो रहा है इनके समकालीन अनेक विद्वानों ने अपने अपने सामर्थ्यानुसार भाषा-भंडार की पूर्ति का उद्योग किया और ये उसका उन्नति में सहायक हुए। ऐसे समय में जब कि हिंदी की चर्चा दिनों दिन बढ़ती जा रही है और उसके लिघने पार पढ़नेयालों की संख्या पृद्धि पर है तथा उसे लोग राष्ट्र-मापा के पद पर सुशोभित करने के लिये उद्योगी हो रहे हैं, यह आवश्यक जान पड़ता कि उसके कुछ मुख्य मुख्य सेपियों का चित्र पर चरित्र हिंदी-प्रेमियों के
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