पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/६९

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1 अच्छे व्याख्यान देते थे कि जिनकी बड़े बड़े विद्वान् प्रशंसा करते थे। पंडित लक्ष्मीशंकर समय का बड़ा आदर करते थे। वे अपना किंचित् मात्र भी समय व्यर्थ न जाने देते थे। नित्य के आवश्यक कामों से जो समय वचता उसमें माप उत्तमोत्तम पुस्तकें लिखा करते थे। पहिले पहिल इन्होंने त्रिकोणमिति (Trignometry) नामक एक ग्रंथ लिखा जिसके लिये इस प्रांत की गवर्नमेंट ने इन्हें पक हजार रुपया इनाम दिया। इसके पीछे हिंदी में गणितकौमुदी को रचना की । यह पुस्तक अब तक पाठशालाओं में पढ़ाई जाती है। सात वर्ष तक पंडित जी गणित के अध्यापक रहे । इसके बाद सन् १८७७ ६० में पाप विज्ञानशास्त्र के अध्यापक हुए । इस समय इन्होंने विज्ञान पर पुस्तकें लिखना प्रारम्भ किया और पदार्थ- विमान विटप, प्रारतिक भूगोल चंद्रिका, वायुचक्र विज्ञान, स्थिति विद्या, गति विद्या आदि नामकी परम उपयोगी पुस्तकें लिख कर हिंदी के भंडार में विज्ञान-शान का बीज बो दिया। बनारस नार्मल स्कूल के हेड मास्टर बाबू बालेश्वरप्रसाद जी हिंदी में काशीपत्रिका नाम की एक पाक्षिक पत्रिका को स्वयं सम्मा- दन फरके प्रकाशित करते थे । सन् १८८५ ई० में जब पंडित लक्ष्मी- गंकर मिश्र बनारस जिले के स्कूलों के इंस्पेकर नियत हुए तब इन्होने काशीपत्रिका के सत्र अधिकार उनको दे दिए । तब उसी संबन्ध में इन्होंने काशी में अपना चंद्रप्रभा प्रेस खोला और उक्त काशीपत्रिका को साप्ताहिक रूप में प्रकाशित करना आरम्भ किया । यह पत्रिका अपने ढंग की एक ही थी। इसे गवर्नमेंट ने मदरसों के लिये स्वीकार किया था।