पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/८३

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( ४३ ) जब मोहनलाल जी के पिता का देहांत होने लगा तो वे इन्हें पिने परम मित्र मुमताजुद्दौलो नवाब सरफैज़ अलोखा के सपुर्द र गए। उन्होंने बड़ौदा कमिशन के समय इन्हें अपना कांफोडेशल एर्क नियत किया और राज कार्य संबंधी कामों की शिक्षा दी। उन् १८७७ में उनके अपने पद पर से इस्तीफा दे देने पर इन्होंने उदयपुर राज्य में नौकरी कर ली और श्री नाथद्वारा और कांकरोली के महाराजों की नाबालिगो में उन रियासतों का अच्छा प्रबंध किया। इसके बाद इन्हें उदयपुर को सदर अदालत को दीवानी का काम मिला और फिर कुछ दिनों में इन्हें स्टेट काउंसिल के मेम्बर और सिक्रेटरी का पद प्राप्त हुआ । १३ वर्ष उदयपुर राज्य की सेवा करके इन्होंने यहां से इस्तीफा दे दिया और प्रतापगढ़ राज्य के दीवान नियत हुए । इस समय पाप प्रतापगढ़ से पिंशन पाते हैं मार मथुरा जो में रहते हैं। जिस समय मोहनलाल जी बनारस में थे उस समय परम प्रसिद्ध पुरातत्त्व येत्ता डाकृर राजेंद्रलाल मित्र अक्सर बाबू हरि- श्चंद्र जी के यहाँ प्राया करते थे। उन्होंने इनकी रुचि देख कर इन्हें पुरातत्व की शिक्षा दी जिससे इनकी योग्यता और भी बढ़ गई। इस विषय में अंगरेज़ विद्वान भी आपको प्रशंसा करते हैं। इन्होंने महारानी विकोरिया की जुबिली के समय भारत सरकार में १००० रुपया जमा करके यह प्रार्थना की थी कि इस धन से प्रति- पर्प दो तमगे उन दो छात्रों को मिला करें जो कलकत्ता नियर सिटी की परीक्षा में सब से औयल पायें। इसे सरकार ने धन्य- याद पूर्वक स्वीकार किया । अब ये दोनों मेडल इलाहाबाद । विश्वविद्यालय द्वारा प्रति पर्प दिए जाते हैं। इन्होंने हिंदी में १२ पुस्तकें रची हैं। पृथ्वीराज रासो को संरक्षा को पर उसका सम्ादन भी किया। हिंदी के विद्वानों में पुरातत्व को रचि और उसमें दक्षता रखने वालों में प्रापका स्थान उपहै। 1