पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/८८

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CAMER थी। दुर्भाग्यवश इसो वर्ष इनकी माता का भी परलोकवास हो परीक्षा तक पढ़ लिया था और संस्कृत के अतिरिक्त वैद्यक विद्या में भी कुछ दखल कर लिया था। वंगला भाषा में भी इन्होंने अपने (१६) बाबू कार्तिकप्रसाद खत्री। यू कार्तिकप्रसाद के पितामह गोविंदप्रसाद वा तीघाटन की इच्छा से शृंदायन में पाए और ये यही रहने लगे।वे परथी मारसी में अच्छी योन el ता रखते थे पार हकीमी विद्या में भी निपुर इसलिये भरतपुर के महाराज के कगपात्र होत उसी दरबार में हकीम के पद पर नियत होकर रहने लगे। पर सन् १८२८ में जब भरतपुर अँगरेज सरकार ने विजय कर लि. तो चे कलकत्ते में आकर रहने लगे। यहां उन पर सरकार में कृपा रही और वे २००) मासिक पाते रहे। इसी प्रकार उनके पु बलदेवप्रसाद जी भी हकीमी विद्या में निपुख हुप पार वे सरकार के कृपापात्र रहे। बाबू कार्तिकप्रसाद का जन्म संवत् १९०८ मि. अगहन व ७ को कलकत्ते में हुआ था। इनके पिता बलदेव प्रसाद जा ने इन यथासाध्य अच्छी शिक्षा देने का प्रबंध किया था परंतु सद १८७ में जब उनका देहांत हो गया तो इनका अवस्या केवल १७ वर्ष के गया । इसी कारण सांसारिक व्यवहारों का भार सिर पर पड़ने के कारण ये आगे शिक्षा न पा सके और न प्राप्त शिक्षाच उचित उपयोग कर सके। उस समय तक इन्होंने अंगरेजी में एंट्रेस योग्यता प्राप्त कर ली थी