पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/९५

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(१७) पंडित भीमसेन शर्मा । तुला फ़र्रुखाबाद में मेरापुर नाम का एक गांव था। उसी ज़ि के समीप रामपुर एक वस्ती है। रामपुर किसी क्षत्रिय वंश को राजधानी थी। मेरापुर में उस राज- वंश के पुरोहित धृतकौशिक गोत्रो ब्राह्मण रहते थे। उनका पास्पद मिश्र था, कालवश उक्त राजधानी के नष्ट होने पर मेरापुर भी उजड़ गया। उक्त मिश्र घंश में से एक पंडित हरिराम शमा ज़िला पटा तह. सील अलीगंज के लालपुर नाम के गांव में आ बसे । उनसे छठी पोढ़ी में नेकराम शर्मा का जन्म हुआ। हमारे चरित-नायक पंडित भीमसेन शर्मा इन्हीं नेकरामजी के पुत्र हैं । इनका जन्म संवत् १९११ में हुआ । ढाई वर्ष को अवस्था होने पर इनकी माता का परलोक वास हो गया, तब से ये पिता के पास रहने लगे और वोलने की शक्ति होते ही हिसाब सीखने लगे क्योंकि इनके पिता गणित-विद्या में बड़े निपुण थे। उस समय बालकों के पढ़ने का कोई उचित प्रबंध नहीं था पर इस ओर लोगों का ध्यान आकर्षित हो चुका था । इसलिये गाँव के सब लोगों ने मिल कर एक कायस्थ लाला को उर्दू पढ़ाने पर रक्खा । गाँव के सब लड़कों के साथ पंडित भीमसेन भी उर्दू पढ़ने लगे। ये अपनी तीव्र बुद्धि से अपना पाठ बड़ी सावधानी से घोख लेते थे परंतु लाला जी इनसे प्रसन्न होने के बदले अप्रसन्न थे। वे सोचते थे कि यदि इसी तरह सब लड़के पढ़ गए तो हमारी