पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/९६

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पुस्तक का भापानुयाद किया पार कई पुस्तके स्यतम्या ( ५० ) जोविका कैसे चलेगी। कुछ दिनों के बाद लाला जो चले गए मै लड़के अधकचरे रह गए परंतु भीमसेन जो दूसरे गांव में पढ़ आते थे । इस तरह से पढ़ने लिखने योग्य उर्दू की योग्य कर लेने पर इन्हों ने हिंदी का अध्ययन आरंभ किया और इस संस्कृत व्याकरण पढ़ना आरंभ किया। १७ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने घर पर अध्ययन किया संवत् १९२५-२६ में जब स्वामी दयानंद जी ने फ़र्रुखाब संस्कृत पाठशाला स्थापित की तो ये वहां पढ़ने चले गए और ध्यायी व्याकरण की श्रेणी में भरती हुए । इन्होंने दो वर्ष मेर अष्टाध्यायी पढ़ ली और इसके अनंतर व्याकरण महाभाष्य, सूत्र, स्वर प्रकरण, चंद्रालोककारिका, अलंकार मार माघ व आदि इन ग्रंथों को एक साथ पढ़ा और एक वर्ष में इन स प्रवेश कर लिया। तदनंतर २१ वर्ष की अवस्था में इनका वि हुआ और फिर ये काशी में आकर दर्शन शास्त्र पढ़ने लगे। इस समय स्वामी दयानंद जी भी काशी में थे। प भीमसेन उन्होंके यहां लिखा पढ़ी का काम करने लगे। उन साथ इन्होंने दिल्ली दरबार देखा और दो वर्ष तक पंजाब में पर्य किया । फिर काशी में रह कर दर्शन नंथ पढ़ने लगे । यहाँ धो पड़ने के कारण वे घर को चले गए और यहाँ से फिर स्वामी के साथ रहने लगे। संवत् १९४० में जय स्वामी दयानंद जी स्वर्गवास हो गया तब ये वैदिक यंत्रालय प्रयाग में संशोधक कार्य पर नियत हुए। यहां रह कर इन्होंने बहुत सी दर्शन पार पछि संपत् १९४२ में इन्होंने प्रायसिद्धांत नाम का एक मासिक निकाला। पार उपनिषदादि कई पुस्तकों पर भाष्य लिये।।