( ५१ ) दिनों के बाद उक्त प्रेस के मैनेजर से बिगाड़ हो जाने के कारण इन्हों ने वह नौकरी छोड़ दी और अपना घर का प्रेस कर लिया। वैदिक यंत्रालय से संबंध छोड़ने के दस बारह वर्ष के बाद कलकचे के सेठ माधवप्रसाद खेमका इनके पास गए और इनसे कहा कि हम यश किया चाहते हैं उसे आप वेद की विधि से कराइए । इन्होंने सेठ जी के अनुरोध से जब चेद में यश की विधि देखी तो उसे प्रायः आर्य-समाज के सिद्धांत के बहुत प्रतिकूल पाया। इन्होंने सेठ जो से कहा । सेठ जी ने कहा कि आर्यसमाज से कुछ प्रयोजन नहीं है हम वेद-विधि से या किया चाहते हैं। अस्तु, इन्होंने उसो समय से पार्यसमाज से अपना संबंध छोड़ दिया और वेद-विधि से यज्ञ कराया। इस पर आर्यसमाजी लोग इनसे बहुत कुछ विगड़े और अखबारों में इनकी बड़ी निंदा छापा। इन्होंने उसका प्रतिवाद किया और 'आयसमाज' को वेद-विरुद्ध धर्म सिद्ध किया। इन्होंने आगरे के आर्यसमाज से श्राद्ध विषय पर शास्त्रार्थ भी किया। इसीके कुछ दिनों बाद ब्राह्मणसर्वस्व नामक मासिक पत्र निकाला । यह पत्र अब भी चलता है। इस समय पंडित भीमसेन जी इटावा नगर में बैठे भगवद्भजन में समय बिताते हैं और विद्या-व्यसन में रत रहते हैं। एक बार जब आर्यसमाज में मांसाहारी दल की प्रबलता हुई तो इन्हें जोधपुर में बुलाकर लोगों ने १००० मासिक पर उपदेशक नियत करके मांस खाने को वेद से सिद्ध कराना चाहा था पर इन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। इस समय इनकी अवस्था ५४ वर्ष की है।
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