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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/११

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फेंकने ले आया है, किंतु अपराधों को फेंकने के बदले अपनी चेतना शक्ति को फेंके देता है। एक दूसरे महापुरुष अविद्या के स्थान में नम्रता को पटककर भागे जाते हैं।

जब इस प्रकार मनुष्य मात्र अपने अवगुणों की गठरियाँ फेंक चुके, तब वह चंचला युवती फिर दिखाई पड़ी, पर इस बार वह मेरी ओर आ रही है। यह देख मेरे जी में अनेक प्रकार के विचार उठने लगे। पर उसकी मदमाती चाल कुछ ऐसी भली मालूम हुई कि मैं एकटक उसी ओर देखता रहा। उसके अंग अंग मे ऐसी चंचलता भरी थी कि चलने में एक एक अंग फड़कता था। मैं यह देख ही रहा था कि वह आ पहुँची और जैसे कोई किसी को दर्पण दिखावे, उस ने अपने बृहद्दर्शक यंत्र को मेरे सम्मुख किया। मैं अपने चेहरे को उसमें देखकर चौंक पड़ा। उस की अपरिमित चौड़ाई पर मुझे बड़ी ग्लानि हुई और उस को उपमुख के समान उतारकर मैंने भी फेंक दिया। संयोग से जो मनुष्य मेरी बगल में खड़ा था उसने अभी कुछ देर पहले अपने बेढब लंबे चेहरे को अलग कर दिया था। मैंने सोचा कि मुझे अपने लिये दूसरा चेहरा कहीं दूर खोजने नहीं जाना पड़ेगा और उसने भी यही सोचा कि उसे भी पास ही अपने योग्य सुडौल चेहरा मिल जायगा। मनुष्य मात्र अपनी आपत्तियाँ फेंक चुके थे। इस कारण अब उन सबको अधिकार था कि अपने लिये जो चाहें ढेर मे से ले सकते हैं।