वास्तव में मुझे यह देख बड़ी प्रसन्नता होती थी कि संसार के सब मनुष्यों ने अपनी अपनी विपद फेंक दी है। उनकी आकृति से संतुष्टता का लक्ष्य हो रहा था। अपने कार्य से छुट्टी पा सभी इधर उधर टहल रहे थे। पर अब मुझे यह देख आश्चर्य हो रहा था कि बहुतों ने जिसे अपत्ति समझकर अलग कर दिया था उसी के लिये बहुतेरे मनुष्य टूट रहे थे, एवं मन ही मन यह कहते थे कि ऐसे स्वर्गीय पदार्थ को जिसने फेंक दिया है वह अवश्य कोई मूर्ख होगा। अब भावना देवी फिर चंचल हुई और इधर उधर दौड़ धूप करने लगीं। सबको फिर बहकाने लगी कि तू अमुक पदार्थ ले, अमुक वस्तु न ले।
इस समय सारी भीड़ में जो कोलाहल मच रहा था उसका वर्णन नहीं हो सकता। मनुष्य मात्र में एक प्रकार की खलबली फैल रही थी। क्या बालक, क्या वृद्ध, सभी अपने अपने मनोवांछित पदार्थ के ढूँढ़ निकालने में दत्तचित्त हो रहे थे।
मैंने एक वृद्ध को, जिसे अपने एक उत्तराधिकारी की बड़ी
चाह थी, देखा कि एक बालक को उठा रहा है। इस बालक
को उसका पिता उससे दुखी होकर फेंक गया था। मैंने
देखा कि इस दुष्ट पुत्र ने कुछ देर बाद उस वृद्ध का नाकों में
दम कर दिया। वह बेचारा अंत में फिर यही विचारने लगा
कि मेरा पूर्व क्रोध ही मुझे मिल जाय । संयोग से इस बालक
के पिता से उसकी भेंट हो गई। इस वृद्ध ने उससे सविनय
कहा कि महाशय! आप अपना पुत्र ले लीजिए और मेरा