उपरांत उस व्यक्ति पर कोई आपत्ति पड़ी और उसकी दशा प्रत्यंत शोचनीय हो गई तो न्याय पालने के विचार का विरोध करुणा कर सकती है। इसी प्रकार यदि अपराधो मनुष्य बहुत रोता गिड़गिड़ाता है और कान पकड़ता है और पूर्ण दंड की अवस्था में अपने परिवार की घोर दुर्दशा का वर्णन करता है तो न्याय के पूर्ण निर्वाह का विरोध करुणा कर सकती है। ऐसी अवस्थाओं में करुणा करने का सारा अधिकार विपक्षी अर्थात् जिसका रुपया चाहिए वा जिसका प्रा- राध किया गया है उसको है, न्यायकर्ता वा तीसरे व्यक्ति को नहीं। जिसने अपनी कमाई के १०००) अलग किए, वा अपराध द्वारा जो क्षति-प्रस्त हुमा, विश्वात्मा उसी के हाथ में करुणा ऐसी उच्च सद्वृत्ति के पात्तन का शुभ अबसर देती है। करुणा सेंत का सौदा नहीं है। यदि न्यायकर्ता को करुणा है तो वह उसकी शांति पृथक रूप से कर सकता है, जैसे ऊपर लिखे मामलों में बद्द चाहे तो दुखिया ऋषी को हजार पाँच सौ अपने पास से दे दे वादंडित व्यक्ति तथा उसके परिवार की और प्रकार से सहायता कर दे। उसके लिये भी करुणा का द्वार खुला है।
पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१३६
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