यह आज्ञा सुन सबके जी में जी आया। सभी लोग जो उप-
स्थित थे मुग्ध हो गए, एवं जयध्वनि करने लगे। सबने पुनः
अपनी अपनी गठरी फेंक दी। इस बार एक विशेषता देखने
में आई। वह यह थी कि ब्रह्मा ने उस चंचला स्त्री को आज्ञा
दी कि वह तत्क्षण वहाँ से चली जाय । भावना देवी यह आज्ञा
पाते ही वहाँ से चल दी। उसका वहाँ से जाना था कि एक
दूसरी स्त्री आती दिखाई पड़ी। पर इसकी उसकी आकृति में
इतना अधिक भेद था कि दोनों की तुलना करना कठिन है।
पर हाँ, दो चार मोटी मोटी बातों पर विवेचना करके उनका
अंतर दिखा देना हम आवश्यक समझते हैं। पहली स्त्री के
चंचल नेत्र तथा चाल ढाल ऐसी मनमोहनी थी कि एक अन-
जान भोले भाले चित्त को मुट्ठी में कर लेना कोई बड़ी बात न
थी, पर इस नई स्त्री की आकृति कुछ और ही कह रही थी।
इसके देखते ही चित्त में भय तथा सम्मान का संचार उत्पन्न
हो आता था और चित्त यही चाहता था कि घंटों इसे खड़े
देखा करें। जिस प्रकार विधना ने उसके अंग में चंचलता
कूट कूटकर भर दी थी, उसी प्रकार इसके प्रत्येक अंग से
शांति तो गंभीरता बरस रही थी। यदि उसे आप शिशुवत्
चंचला कहिए तो इसे आपको अवश्य ही शांति देवी की मूर्ति
कहना पड़ेगा। इसके चेहरे से यद्यपि गंभीरता के भाव का
लक्ष्य होता था, पर साथ ही एक मंद मुसकान दिखाई देती थी
जिसका चित्त पर बड़ा दृढ़ प्रभाव पड़ता था। ज्योंही यह देवी
पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१५
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