पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१४

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प्रसन्नतापूर्वक अपने चेहरे पर लगा लिया। मेरा गोल चेहरा लगाते ही वह ऐसा कुरूप तथा हास्यजनक दिखाई पड़ने लगा कि मैं हँसी न रोक सका। वह भी मेरी हँसी ताड़ गया और अपने किए पर अपने मन में पछताने लगा। अब मेरे मन में भी यह विचार उठा कि कहीं मैं भी वैसा ही बेढङ्गा न दिखाई पड़ता होऊँ। नवीन चेहरा पोकर मैंने अपना माथा खुरचने के लिये हाथ बढ़ाया तो माथे का स्थान भूल गया। हाथ होठों तक पहुँच कर रुक गया । नाक के स्थान का भी ठीक ठीक अनुभव न था। इसी से उँगलियों की कई बार ऐसी ठोकर लगी कि नेत्रों में जल भर आया। मेरे पास ही दो मनुष्य ऐसी बेढब सूरतवाले खड़े थे जिन्हें देख देख मैं मन ही मन हँस रहा था।

वह सारा ढेर इस प्रकार मनुष्यों ने आपस में बाँट लिया पर वास्तविक संतुष्टता को वे तिस पर भी न प्राप्त हुए। जो बुद्धिमान थे उन्हें अपनी मूर्खता का बोध पहले होने लगा। सारे मैदान में पहले से अधिक विलाप और भनभनाहट का शब्द सुनाई देने लगा। जिधर दृष्टि पड़ती थी उसी ओर लोग बिलख रहे थे और ब्रह्मा की दुहाई दे रहे थे जब ब्रह्मा ने देखा कि अब बड़ा हाहाकार मच गया है और यदि शीघ्र इनका उद्धार न किया गया तो और भी हाहाकार मच जायगा, तब उन्होंने फिर आज्ञा दी कि मनुष्य मात्र फिर अपनी अपनी आपत्तियाँ फेंक दें, उनको उनकी पुरानी आपत्ति दी जायगी।