सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १६१ )

देता और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था। "सूली मुझे है सेज पिया की सोने दो मीठी मीठी नींद है आती।" अमर ईसा को भला दुनिया के विषय-विकार में डूबे लोग क्या जान सकते थे? अगर चार चिड़ियाँ मिलकर मुझे फाँसी का हुक्म सुना दें और मैं उसे सुनकर रो दूँ या डर जाऊँ तो मेरा गौरव चिड़ियों से भी कम हो जाय । जैसे चिड़ियाँ मुझे फाँसी देकर उड़ गई वैसे ही बादशाह और बादशाहते आज खाक में मिल गई हैं। सचमुच ही वह छोटा सा बाबा लोगों का सच्चा बादशाह है। चिड़ियों और जानवरों की कचहरियों के फैसलों से जो डरते या मरते हैं वे मनुष्य नहीं हो सकते । रानाजी ने जहर के प्याले से मीराबाई को डराना चाहा। मगर वाह री सचाई ! मीरा ने उस जहर को भी अमृत मान- कर पी लिया। वह शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे प्रेम ! मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया।इस- वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। भीतर ध्यान करते हैं। मारते नहीं, मरते हैं।

वह वीर क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट टंढा हो जाता है। सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हजारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक टंढी हो।

नि०--११