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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१७२

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जब हम कभी वीरों का हाल सुनते हैं तब हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठती हैं और वीरता का रंग चढ़ जाता है। परंतु वह चिरस्थायी नहीं होता। इसका कारण सिर्फ यही है कि हमारे भीतर वीरता का मसाला तो होता नहीं। हम सिर्फ खालो महल उसके दिखलाने के लिये बनाना चाहते हैं। टीन के बरतन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केंद्र में निवास करो और सचाई की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जानो। अपनी जिंदगी किसी और के हवाले करो ताकि जिंदगी के बचाने की कोशिशों में कुछ भी वक्त जाया न हो। इसलिये बाहर की सतह को छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में घुस जाओ; तब नए रंग खुलेंगे। द्वेष और भेददृष्टि छोड़ो; रोना छुट जायगा। प्रेम और आनंद से काम लो; शांति की वर्षा होने लगेगी और दुखड़े दूर हो जायँगे। जीवन के तत्त्व का अनुभव करके चुप हो जाना; धीर और गंभीर हो जाओगे। वीरों की, फकीरों की, पीरों की यह कूक है——हटो पीछे, अपने अंदर जानो, अपने आपको देखो, दुनियाँ और की और हो जायगी। अपनी आत्मिक उन्नति करो।

——पूर्णसिंह