हुए सुना है कि यह जगत् स्वार्थ और कृतन्नता से भरा है, अनुभव में यह बात नहीं आई। यह कदाचित मेरा सुदैव होगा।" विचार करके देखा जाय तो बहुधा यही अनुभव औरों को भी होगा।
इमरसन की उक्ति है-"इस संसार में हम अकेले हैं। जो लोग यह कहा करते हैं कि इस लोक में हमे अपने मनभाए मित्र मिलेंगे वे मानों स्वप्न देखते हैं। अपने से प्रेम रखने- वाली और अपनी प्रीतिपान जो आत्माएँ हैं वे सांप्रत परलोक में निवास करती हैं, यह आशा करते हुए हमें अपने हृदय को शांति देनी चाहिए।
मित्रं प्रीतिरसायनं नयनयोरानंदनं चेतसः ।
पात्रं यत्सुखदुःखयोः सह भवेन्मित्रेण तत् दुर्लभम् ।। -हितोपदेश
भावार्थ-मित्र नयनों के लिये आनंददायक प्रोति रसायन है, अंतःकरण को आह्लाद देनेवाली वस्तु है; पर जो सुख और मे एक सा साथ देवे ऐसा मित्र बिरला होता है।
मित्रों के समागम मे हम अपना जीवन सुख और आनंद में व्यतीत करते हैं, इस विषय में एक मत है इसमें संदेह नहीं, तथापि इस पर सर्वथा अवलंब करते नहीं बनता। सच पूछिए तो-
"आत्मैव आत्मनो बंधुः, प्रात्मैव रिपुरात्मनः ।"
हम आप ही अपने मित्र हैं और आप ही अपने शत्रु भी हैं; यही विश्वास करके बर्तना चाहिए ।