"इस जगत् में सच्ची मैत्री नहीं है और समान स्थिति के लोगों में जो मैत्री दिखाई देती है उसका मूल्य असलियत से ज्यादा समझने की रीति पड़ गई है। अगर सच्चो मैत्रो कहीं हो भी तो ऐसे उच्च नीच स्थिति के मनुष्यों में होगी जिसमें एक के वश में दूसरा रहता हो।" यह बात जो बेकन ने कही है इसके विरुद्ध उसी ने यह भी कहा है-
"हमारा यदि कोई सच्चा मित्र न हो तो यह जगत् निर्जन वन के समान प्रतीत होगा और हमारा जीवन एकांतवास में व्यतीत होने के कारण दुःखदायी होगा। परंतु जब अपनी चित्तवृत्ति और विचारों में उधेड़बुन होने लगती है उस समय मन किं-कर्तव्य- विमूढ़ हो जाता है और हम अँधेरे में जिस प्रकार टटोल टटोल- कर चलते हैं उसी तरह बर्ताव में भी चलते हैं। ऐसे समय मित्रों के समागम से हमें उजाला मिल जाता है और सीवा मार्ग दिखाई पड़ने लगता है; विपत्ति के समय हमारा मन प्रसन्न रहता उनके साथ वार्तालाप करने से अपने विचार एक से जारी रहते और अच्छो प्रणाली मिलती है। वे विचार अगर लिखे जायँ तो कैसे होंगे, यह मालूम हो जाता है और अपने आप उनका मनन करने से जितना ज्ञान होता है उतना ज्ञान मित्रों के साथ एक घड़ो भर वार्तालाप करने से हो जाता है और हम अधिकाधिक चतुर और बुद्धिमान बनते चले जाते हैं।"
मित्रों के साथ निरर्थक विषयों पर वार्तालाप नहीं करना चाहिए। इसके बारे में इपिक्टेटस ऐसा उपदेश करते हैं-