सचमुच सपने का खेल सा दिखलाई दिया। चाँदी की सारी
चमक जाती रही, सोने की बिलकुल दमक उड़ गई, सोने में
लोहे की तरह मोर्चा लगा हुआ जहाँ जहाँ से मुलम्मा उड़
गया था भीतर का ईट पत्थर कैसा बुरा दिखलाई देता था।
जवाहिरों की जगह केवल काले काले दाग रह गए थे, और
संगमर्मर की चट्टानों में हाथ हाथ भर गहरे गढ़े पड़ गए थे।
राजा यह देखकर भौचक्का सा रह गया, अासान जाते रहे,
हक्काबका बन गया। उसने धीमी अवाज से पूछा कि ये
टिड्डीदल की तरह इतने दाग इस मंदिर में कहाँ से आए ?
जिधर मैं निगाह उठाता हूँ सिवाय काले काले दागों के और
कुछ भी नहीं दिखलाई देता! ऐसा तो छोपी छोट भो नहीं
छापेगा और न शीतला से बिगड़ा किसी का चेहरा ही देख
पड़ेगा। सत्य बोला कि "राजा ये दाग जो तुझे इस मंदिर में
दिखलाई देते हैं दुर्वचन हैं जो दिन रात तेरे मुख से निकला
किए हैं। याद तो कर, तूने क्रोध में आकर कैसी कड़ा कड़ो
बातें लोगों को सुनाई हैं। क्या खेल में और क्या अपना अथवा
दूसरे का चित्त प्रसन्न करने को, क्या रुपया बचाने अथवा
अधिक लाभ पाने को और दूसरं का देश अपने हाथ में लाने
अथवा किसी बराबरवाले से अपना मतलब निकालने और
दुश्मनों को नीचा दिखलाने को तैने कितना झूठ बोला है। अपने
ऐब छिपाने और दूसरे की आँखों में अच्छा मालूम होने अथवा
भूठी तारीफ पाने के लिये तैने कैसी कैसी शेखियाँ हाँकी हैं
पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/३९
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