और अपने को औरों से अच्छा और औरों को अपने से बुरा
दिखलाने को कहाँ तक बातें बनाई हैं सो क्या अब कुछ भी
याद न रहा, बिलकुल एकबारगी भूल गया ? पर वहाँ तो वे
तेरे मुँह से निकलते ही बही में दर्ज हुई। तू इन दागों के
गिनने में असमर्थ है पर उस घट-घट-निवासी अनंत अविनाशी
को एक एक बात जो तेरे मुंह से निकली है याद है और याद
रहेगी। उनके निकट भूत और भविष्य वर्तमान सा है।"
आज ने सिर न उठाया पर उसी दबो जबान से इतना मुँह
से और निकाला कि दाग तो दाग पर ये हाथ हाथ भर के
गढ़े क्योंकर पड़ गए, सोने चाँदी में मोर्चा लगकर ये ईट
पत्थर कहाँ से दिखलाई देने लगे ? सत्य ने कहा कि "राजा
क्या तूने कभी किसी को कोई लगती हुई बात नहीं कहो अथवा
बोली ठोली नहीं मारी ? अरे नादान, यह बोली ठोली तो गोली
से अधिक काम कर जाती है, तू तो इन गढ़ों ही को देखकर
राता है पर तेरे ताने तो बहुतों की छातियों से पार हो गए।
जब अहंकार का मोर्चा लगा तो फिर यह देखलावे का मुलम्मा
कब तक ठहर सकता है ! स्वार्थ और अश्रद्धा का ईट पत्थर
प्रकट हो गया ।" राजा को इस अर्से में चिमगादड़ों ने बहुत
तंग कर रखा था। मारे बू के सिर फटा जाता था। भुनगाँ
और पतंगों से सारा मकान भर गया था, बीच बाच में पंख-
वाले सॉप और बिच्छू भी दिखलाई देते थे। राजा घबराकर
चिल्ला उठा कि यह मैं किस आफत पड़ा, इन कमबख्तों को