पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६२ )


देश का सर्व प्रकार हितसाधन कर सकते हैं। केवल मन लगा के पढ़ना और प्रत्येक चौपाई का आशय समझना तथा उसके अनुकूल चलने का विचार रखना होगा। रामायण में किसी सदुपदेश का अभाव नहीं है। यदि विचारशक्ति से पूछिए कि रामायण की इतनी उत्तमता, उपकारकता, सरसता का कारण क्या है ? तो यही उत्तर पाइएगा कि उसके कवि ही आश्चर्य शक्ति से पूर्ण हैं, फिर उनके काव्य का क्या कहना ? पर यह बात भी अनुभवशाली पुरुषों की बताई हुई है फिर इन सिद्ध एवं विदग्धालाप कवीश्वरों का मन कभी साधारण विषयों पर नहीं दौड़ता। वे संसार भर का चुना हुआ परमोत्तम प्राशय देखते हैं तभी कविता करने की ओर दत्तचित्त होते हैं, इससे स्वयंसिद्ध है कि रामचरित्र वास्तव में ऐसा ही है कि उस पर बड़े बड़े कवीश्वरों ने श्रद्धा की है, और अपनी पूरी कविताशक्ति उस पर निछावर करके हमारे लिये ऐसे ऐसे अमूल्य रत्न छोड़ गए हैं कि हम इन गिरे दिनों में भी उनके कारण सच्चा अभिमान कर सकते हैं, इस हीन दशा में भी काव्यानंद के द्वारा परमा- नंद पा सकते हैं, और यदि चाहें तो संसार परमार्थ दोनों बना सकते हैं। खेद है, यदि हम भारत-संतान कहाकर इन के अमूल्य रत्नों का आदर न करें ! और जिसके द्वारा हमें यह महामणि प्राप्त हुए हैं उनका उपकार न माने तथा ऐसे राम को, जिनके नाम पर हमारे पूर्वजों के प्रेम, प्रतिष्ठा, गौरव एवं मनोविनोद की नींव थी, अथच हमारे