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लिये गिरी दशा में भी जो सच्चे अहंकार का कारण और
जिससे आगे के लिये सब प्रकार के सुधार की आशा है, भूल
अथवा किसी के बहकाने से राम नाम की प्रतिष्ठा
करना छोड़ दें तो कैसी कृतघ्नता, मूर्खता एवं प्रात्महिंसकता
। पाठक ! यदि सब भाँति की भलाई और बड़ाई चाहो तो
सदा सब ठौर सब दशा में राम का ध्यान रखा, राम को
भजो, राम के चरित्र पढ़ो, सुनो, राम की लीला देखो दिखाओ,
राम का अनुकरण करो । बस इसी में तुम्हारे लिये सब कुछ
है। इस 'रकार' और 'मकार' का वर्णन तो कोई त्रिकाल में
कही नहीं सकता। कोटि जन्म गावें तो भी पार न पावेंगे।
-माधवप्रसाद मिश्र