पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/८९

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दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या वे दोनों हिजाब में आय अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख और अज्ञानी समझ बनाने लगेंगे। इसी से

"द्वाभ्यां तृतीयो न भवामि राजन्"

लिखा है। जैसे गरम दूध और ठंढे पानी के दो बरतन पास साँट के रखे जायँ तो एक का असर दूसरे में पहुँचता है अर्थात् दूध ठंढा हो जाता है और पानी गरम, वैसे ही दो प्रादमी पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है, चाहे एक दूसरे को देखे भी नहीं। तब बोलने की कौन कहे। पर एक का दूसरे पर असर होना शुरू हो जाता है। एक के शरीर की विद्युत् दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक असर होगा इसे कौन न स्वीकार करेगा। अस्तु, अब इस बात को तीन आदमियों के समय में देखना चाहिए । मानों एक से त्रिकोण सा बन जाता है। तीनों का चित्त मानो तीन कोण हैं और तीनों की मनोवृत्ति के प्रसरण की धारा मानों उस त्रिकोण की तीन रेखाएँ हैं । गुप- चुप असर तो उन तीनों में परस्पर होता ही है जो बात चीत तीनों में की गई वह मानों अँगूठी में नग सी जड़ जाती है उपरांत जब चार आदमी हुए तब बेतकल्लुफी को बिल्कुल स्थान नहीं रहता!, खुलके बाते न होगी। जो कुछ बात- चीत की जायगी वह “फार्मेलिटी", गौरव और संजीदगी के