है। आकाश घड़ी घड़ी रंग बदलकर अपनी निर्मल शोभा और
घनों की घटा की छाया भूमि पर डालता हुआ दिखाई देगा।
प्राकृतिक सौंदर्य को देख आनंदित होना मन का एक उत्तम इस गुण का बीज यदि हम नष्ट कर देंगे तो हमारे चरित्र पर उसका अनिष्टकारक परिणाम होगा। इसलिये जिसे प्रकृति की सुंदरता देखकर आह्लाद नहीं होता उसका दुर्जन होना साधारण बात है किंतु प्राकृतिक सौंदर्य से प्रेम रखनेवाला मनुष्य हंसमुख, आनंदो और प्रसन्नचित्त होता है, इसमें संदेह नहीं।
विकसितसहकारभारहारि-परिमल-पुजित-गुंजित-द्विरेफः ।
नव-किसलय-चारु-चामर-श्रीहरति मुनेरपि मानसं वसंतः॥
भाव-आम्र-मंजरी की सुगंध के चारों ओर फैल जाने से भुंगवृंद गुजार करते हुए उन पर मोहित हो जाते हैं । वृक्षों के नवीन कोमल पत्ते फूटकर सुंदर चँवर की भाँति सुहाते हैं, ऐसे वसंत की शोभा मुनिजनों के भी मन को हर लेती है, फिर मनुष्य का कहना ही क्या है ?
"कूलन में केलिन कछारन में कुंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहै पदमाकर पराग हू में पौन हू में,
पातिन में पीकन पलाशन पगंत है॥
द्वार में दिशान में दुनी में देश देशन में,
देखो द्वीप द्वीपन में दीपति दिगंत है।