पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१०८

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हिंदी भाषा जाता था। पीछे कंठय हो गया । कंठ्य का अर्थ गले में उत्पन्न (guttural) नहीं लिया जाता। फंठ कोमल तालु का पर्याय है, अतः कंव्य का अर्थ है 'कोमल-तालन्य' । उदा०-कम, चकिया, पक। (३) ख-यह महामाण, अघोप, फंध्य-स्पर्श है। क और ख में केवल यही भेद है कि ख महाप्राण है। उदा०-खेत, भिखारी, सुख । (४)ग-अल्पप्राण, घोप, फंट्य स्पर्श है । उदा०-गमला, गागर, नाग। (५) घ-महाप्राण, घोप, कंट्य-स्पर्श है। उदा०-घर, रिघाना, बघारना, फरघा । (६) द-अल्पप्राण, अघोप, मूर्धन्य, स्पर्श है। मूर्धा से कठोर तालु का सबसे पिछला भाग समझा जाता है पर श्राज समस्त टवी ध्वनियाँ कठोर तालु के मध्यभाग में उलटी जीभ की नोक के स्पर्श से उत्पन्न होती हैं। तुलना की दृष्टि से देखा जाय तो अवश्य ही मुर्धन्य पर्णी का उच्चारण-स्थान तालव्य घों की अपेक्षा पीछे है। वर्ण- माला में कंट्य, तालव्य, मूर्धन्य और दंत्य घणों को कम से रखा जाता है इससे यह न समझना चाहिए कि कंठ के बाद तालु और तय मूर्धा श्राता है। प्रत्युत कंट्य और तालव्य तथा मूर्धन्य और दंत्य वणों के परस्पर संबंध को देखकर यह वर्णक्रम रखा गया है-चाक से चाच का और विकृत से विकट का संबंध प्रसिद्ध हो । उदा०-टीका, रटना, चौपट । अँगरेजी में ट, ड् ध्वनि नहीं हैं। अँगरेजी और d घस्य है अर्थात् उनका उच्चारण ऊपर के मसूढ़े को विना उलटी हुई जीम की नोक से छूकर किया जाता है; पर हिंदी में वर्त्य ध्वनि न होने से घोलनेवाले इन अँगरेजी ध्वनियों को प्रायः मूर्धन्य बोलते हैं। (७) ठ-महाप्राण, अघोष, मूर्धन्य, स्पर्श है। उदा०-ठाट, कठघरा, साठ। (८) ड-अल्पप्राण, घोप, मूर्धन्य, स्पर्श-व्यंजन है। उदा०-डाक, गाडर, गँडेरी, टोडर, गड्ढा, खड। (६)ढ–महाप्राण, घोष, मूर्धन्य स्पर्श है। उदा०-ढकना, ढोला, पंढ, पंढरपूर, मेढक । ढ का प्रयोग हिंदी तद्भव शब्दों के श्रादि में ही पाया जाता है। पंढं संस्कृत का श्रार पंढरपूर मराठी का है। ,