पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१०९

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हिंदी का शास्त्रीय विकास (१०) त-अल्पप्राण, अघोप, दंत्य स्पर्श है। इसके उच्चारण में जीभ की नोक दाँतों की ऊपरवाली पंक्ति को छूती है। उदा०-तय, मतवाली, बात। (११)थत और थ में केवल यही भेद है कि थ महामाण है । उदा०-थोड़ा, पत्थर, साथ। (१२) द-इसका भी उच्चारण त की भांति होता है। यह अल्पप्राण, घोप, दंत्य स्पर्श है। उदा०-दादा, मदारी, चाँदी। (१३) ध-महाप्राण, घोप, दंत्य स्पर्श है। उदा०-धान, वधाई, श्राधा। (१४)प-अल्पप्राण, अघोप, श्रोष्ठय स्पर्श है। ओष्ठय ध्वनियों के उच्चारण में दोनों आठों का स्पर्श होता है और जीम से सहायता नहीं ली जाती। यदि कोई श्रोष्ठय वर्ण शब्द अथवा 'अक्षर' के अंत में आता है तो उसमें केवल स्पर्श होता है, स्फोट नहीं होता। उदा०-पत्ता, अपना, वाप। (१५) फ-यह महाप्राण, अघोप, नष्ठिय स्पर्श है। उदा०-फूल, वफारा, कफी, (१६) य-अल्पप्राण, घोप, आष्टय स्पर्श है। . उदा०-वीन, धोविन, अय। (१७) भयह महाप्राण, घोप, ओष्ठय स्पर्श है। उदा०-मला, मनभर, साँमर, कमी। (१८) च-च के उच्चारण में जिह्वोपान ऊपरी मसूढ़ों के पास के ताल्वन का इस प्रकार स्पर्श करता है कि एक प्रकार की रगड़ होती है घर्ष-स्पर्श है अतः यह घर्ष-स्पर्श अथवा स्पर्श-संघर्षी ध्वनि मानी जाती है। तालु की दृष्टि से देखें तो कंठ के आगे वर्ग आता है और उसके भागे चवर्ग अर्थात् चवर्ग का स्थान प्रागे की ओर बढ़ गया है। च-अल्पप्राण, अघोप, तालव्य घर्ष-स्पर्श व्यंजन है। उदा०-चमार, कचनार, नाच। (१६) छ-महाप्राण, अघोप, तालव्य घर्ष-स्पर्श वर्ण है। उदा०-छिलका, कुछ, कछार।। (२०) ज-अल्पप्राण, घोप, तालव्य स्पर्श-घपं वर्ण है। उदा०-जमना, जाना, काजल, आज I . (२१) झ-महाप्राण, घोप, तालव्य धर्ष-स्पर्श वर्ण है।