पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/११३

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११३ हिंदी का शास्त्रीय विकास ही पाई जाती है और हिंदी बोलियों में स्पर्श ख के समान उच्चरित होती है। उदा०- खराय, बुखार और घलख । (३७) ग-इसमें और ख में केवल एक 'भेद है कि यह घोप है। अर्थात् ग जिह्वामूलीय, घोप, घर्प-ध्वनि है। यह भी भारतीय ध्वनि नहीं है, केवल फारसी-अरवी तत्सम शब्दों में पाई जाती है। वास्तव में ग और ग में कोई संबंध नहीं है पर बोलचाल में ग़ के स्थान में ग ही घोला जाता है। उदा०-गरीब, चोगा, दाग। (३८) श–यह अघोप, घर्प, तालव्य ध्वनि है। इसके उच्चारण में जीभ की नोक कठोर तालु के बहुत पास पहुँच जाती है पर पूरा स्पर्श नहीं होता, अतः ताल और जीम के बीच में से हवा रगड़ खाती हुई विना रुके श्रागे निकल जाती है। इसी से यह ध्वनि घर्प तया अन- घरुद्ध कही जाती है। इसमें 'शी', 'शो' के समान ऊपमा निकलता है इससे इसे ऊपम ध्वनि भी कहते हैं। यह ध्वनि प्राचीन है। साथ ही यह अँगरेजी, फारसी, अरवी श्रादि से आए हुप विदेशी शब्दों में भी पाई जाती है । पर हिंदी की योलियों में श का दंत्य (स ) उच्चारण होता है। उदा०-शांति, पशु, यश, शायद, शाम, शेयर, शेड। (३६) स-चर्य, 'घर्ष, अयोप ध्वनि है। इसके उच्चारण में जीभ की नोक और वर्क्स के बीच घर्पण (रगड़) होता है। । . उदा०--सेवक, श्रसगुन, कपास। (४०) ज़-ज़ श्रीर स का उच्चारण-स्थान एक ही है। ज भी पर्य, घर्ष-ध्वनि है किंतु यह घोप है। अतः ल फा संबंध स से है। ज से नहीं। ज भी विदेशी ध्वनि है और फारसी-श्ररयी तत्सम शब्दों में ही बोली जाती है। हिंदी वोलियों में ज़ का ज हो जाता है। उदा०-- जुल्म, गुज़र, याज्ञ। (४१) फ़-दंतोप्ठय, घर्ष, अयोप व्यंजन है। इसके उधारण में नीचे का होठ ऊपर के दांतों से लग जाता है पर होठ और दांत दोनों के बीच में से हवा रगड़ के साय निकलती रहती है। इसको स्थोप्ट्य फ का रूपांतर मानना शास्त्रीय दृष्टि से ठीक नहीं है। वास्तव में फ विदेशी ध्वनि है और विदेशी तत्सम शब्दों में हो पाई जाती है। हिंदी वोलियों में इसका स्थान फ ले लेता है। उदा०-फ़स्ल, कफ़न, साफ़।