पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१२८

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१२६ हिंदी भाषा . (१) कर्ता-कर्ता कारक की विभक्ति किसी माधुनिक भार्य भाषा में नहीं है। हिंदी में जब सकर्मक क्रिया भूतकाल में होती है, तव कर्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगती है। यह ने विभक्ति पश्चिमी हिंदी का एक विशेष चिह्न है। पूर्वी हिंदी में इसका पूर्ण अभाव है। यह 'ने' घास्तव में करण का चिह्न है, जो हिंदी में गृहीत फर्मवाच्य रूप के कारण श्राया है। इसका प्रयोग संस्कृत के करण कारक के समान साधन के अर्थ में नहीं होता; इसलिये हम 'ने' को करण कारक का चिह नहीं मानते। फरण कारक का चिह हिंदी में 'से' है। (संस्कृत में करण कारक का 'इन' प्राकृत में 'पण' हो जाता है। इसी 'इन' का वर्ण-विपरीत हिंदी रूप'ने है। .. (२) कर्म और संप्रदान कारक-इन कारकों की विभक्ति हिंदी में 'को' है। इन दोनों कारकों के प्रयोग में स्पष्टता न होने के कारण प्रायः इनका परस्पर उलट-फेर हो जाता है। यह हिंदी के लिये नई बात नहीं है। करण, अपादान और अधिकरण कारकों में प्रायः उलट-फेर हिंदी की पूर्ववर्तीय भाषाओं में भी हो जाता है। संस्कृत में सात कारक हैं-कर्ता, कर्म, करण, समदान, अपादान, संबंध और अधि- करण। पर संस्कृत चैयाकरण संबंध को कारक नहीं मानते। मारतों में संप्रदान का प्रायः लोप हो गया है। साथ ही प्राकृतों में यह भी प्रवृत्ति देखी जाती है कि अन्य कारकों के स्थान में संबंध का प्रयोग होता है। इस प्रकार कारकों के केवल दो ही प्रत्यय अर्थात् कर्ता और संबंध के रह जाते हैं। अपभ्रंश में इस प्रकार एक कारक को कई का स्थानापन्न बनाने की प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट देख पड़ती है। हेमचंद्र ने स्पष्ट लिखा है कि अपभ्रंश में संबंध फारक के प्रत्यय से ही अपादान और संबंध दोनों का बोध होता है। आधुनिक भापायों में शब्दों के दो रूप हो जाते हैं--एक कर्ता का अविकारी रूप और दूसरा अन्य फारकों में चिकारी अर्थात् फारफ-चिलमाही रूप। इससे भिन्न भिन्न कारकों के प्रयोग में स्पष्टता हो जाती है और इसे बनाए रखने के लिये श्राधुनिक भापात्रों में कारक-चिह्न-ग्राही रूपों में भिन्न भिन्न विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। परंतु प्राकृतों तथा अपभ्रंशों में कारकों के लोप अथवा एक दूसरे में लीन हो जाने के कारण आधुनिक हिंदी में कर्म और संप्र. दान तथा करण और अपादान कारकों की-एक ही विभक्ति रह गई है। चीम्स साहच का कथन है कि 'को' विभक्ति संस्कृत के 'क' शब्द से निकली है, जिसका विकार क्रमशः इस प्रकार हुश्रा है-कक्ख, काँख, काहँ, काहूँ, काहुँ, कहूँ, की, कों और अंत में को। परंतु जिस अर्थ में