पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१७१

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हिंदी साहित्य हुए और सैयदों ने सिंधु-तटों के प्रदेश पर अपना अधिकार जमाया। इस प्रदेश पर मुसलमानों के इन नाक्रमणों का कोई स्थायी प्रमाव नहीं पड़ा। उन्होंने अपने शासन के जो कुछ चिह्न छोड़े, वे बड़ी बड़ी इमारतों के भन्नावशेष मात्र है, जो श्राक्रमणकारियों की करता और अत्याचार के स्मारक स्वरूप अब तक वर्तमान हैं। उन मुसलमानों का भारतीयों की संस्कृति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, पर यहाँ की संस्कृति के प्रभाव से वे अछूते नहीं रह सके। इस संबंध में डाक्टर ईश्वरीप्रसाद अपने मध्य- कालीन भारत के इतिहास में लिखते हैं- "यह निस्संकोच होकर स्वीकार करना पड़ेगा कि सिंघ पर अरयों की विजय इस्लाम के इतिहास में कोई विशेष महत्वपूर्ण राज- नीतिक घटना नहीं है, परंतु इस विजय का मुसलमानों की संस्कृति पर वड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। जव अरवयासी भारतवर्ष में पाए तब वे इस देश की उच्च सभ्यता देखकर चकित हो गए। हिंदुओं के उच्च दार्शनिक सिद्धांत तथा उनकी बुद्धि की तीवता और पांडित्य श्रादि देखकर उन्हें बड़ा श्राश्चर्य हुअा। मुसलमानों का सर्वश्रेष्ठ धार्मिक सिद्धांत एक ईश्वर की कल्पना है, पर यह तो हिंदू महात्माओं और दार्शनिकों को बहुत पहले से मालूम था। उच्च कलाओं में हिंदू बहुत बढ़े चढ़े थे। भारतीय संगीतज्ञ, वास्तुकलाकार तथा चित्रकार भी अरयों की दृष्टि में उतने ही श्रादरणीय थे जितने भारतीय दर्शनशास्त्री और पंडित थे। राज्यशासन-नीति आदि व्यावहारिक विषयों में अरयों ने हिंदुत्रों से बहुत कुछ सीखा। चे उच्च पदों पर ब्राह्मणों को ही नियुक्त करते थे। इसका कारण यही था कि वे शान में, अनुभव में और कार्य- फुशलता में अधिक दक्ष थे। श्ररव संस्कृति के अनेक अवयव, जिन्हें युरोप ने प्रचुरता से ग्रहण किया था, भारत से ही प्राप्त हुए थे। उस समय भारतवर्ष बुद्धि के ऊँचे धरातल पर स्थित था और। अनेक यवन विद्वान् भारत के बौद्ध तथा ब्राह्मण पंडितों से दर्शन, ज्योतिप, गणित, श्रायुर्वेद तथा रसायन श्रादि विद्याएँ सीखते थे। बगदाद के तत्का- लीन दरवार में भारतीय पंडितों का सम्मान होता था और खलीफा मंसूर (संवत् ८१०-३१) के समय में भारत से कुछ अरब विद्वान् ब्रह्म- गुप्त-रचित ब्रह्मसिद्धांत और खंड-खाद्यक नामक ग्रंथ ले गए थे। इन्हीं पुस्तकों से पहले पहल परयों ने ज्योतिष शास्त्र के प्राथमिक सिद्धांतों को समझा था। खलीफा हारूँ (८४३-८६५) के वजीरों से, जो चरमक- वंशीय थे, हिंदुओं की विद्या को यड़ा प्रोत्साहन मिला। यद्यपि वरमक- परियार ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था, फिर भी चे उसमें विशेष