पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८१

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१८२ हिंदी साहित्य इस नवीन भक्तिमार्ग का प्रशस्त पथ पाकर तत्कालीन संकीर्णता बहुत कुछ दूर हुई। हिंदी साहित्य को एक अभूतपूर्व विकास का अवसर मिला और रामभक्त कवियों की एक परंपरा ही चल पड़ी। इस पर- परा का विस्तृत विनरण हम भागे चलकर देंगे। यहां इतना ही कह देना पर्याप्त होगा कि हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ महाकवि तुलसीदास और भक्तवर नाभादास जैसे महात्माओं ने रामभक्ति की शरण ली और साहित्य को भक्ति के प्रवाह से प्राप्लायित तथा जनता को राम के मंगल- ' मय स्वरूप से दृढ और मुग्ध बना दिया। वैष्णवधर्म के तत्कालीन विकास में महाप्रभु चैतन्य तथा वल्लभा- वार्य का नाम चिशेप रीति से उल्लेसनीय है। चैतन्य का उपदेश देन बंगभूमि था और उनका प्रभाव भी बंगाल में ही अधिक पडा। चैतन्य की भक्ति प्रेम और मोदमयी है। कर्म फी जटिलतासे वह दूर ही रही। । वल्लभाचार्य तैलंग ग्राह्मण थे। उनका जन्मकाल सं० १५३६ घतलाया जाता है। विद्याध्ययन और शास्त्रान्वेषण के उपरांत ये मथुरा, वृदावन श्रादि कृष्णतीर्थों में घूमे और अंत में काशी में श्राकर उन्होंने अनेक पुस्तक लिखीं। उनकी उपासना कृष्ण की उपासना है और यह भी माधुर्य भाव की ।। सिद्धांत में वे शुद्धाद्वैतवादी है। ब्रह्म और जीव एक ही है और जड जगत् भी उससे भिन्न नहीं है । माया के कारण जो विभेद जान पड़ता है, उसका निराकरण भक्ति द्वारा ही हो सकता है। घरलभाचार्य ने प्रत उपवास नादि कष्टसाध्य कम्मी का निषेध किया और पविन प्रेम भाव से उपासना करने की विधि बतलाई। यद्यपि प्रारंभ में इनके पुन विट्ठलनाथ के प्रयत्न से प्रसिद्ध अष्टछाप के भक्त कवियों की स्थापना हुई, पर घल्लभाचार्य की इस उपासनापद्धति से भंगारी कचियों को भी नवीन प्रेरणा मिली और हिंदी साहित्य में भंगार-परंपरा चल पडी। वरलभाचार्य के मतावलंबी भी गुजरात और राजपूताने के धनी व्यापारी श्रादि हुए जिन्हें आध्यात्मिक प्रेम की उतनी श्रावश्यकता न थी जितनी लोकिक विलास की। इस प्रकार हम देसते है कि वल्लभाचार्य की उपासनापद्धति के परिणाम स्वरूप विलास की ओर अधिक प्रवृत्ति हुई जिसको मुगल सम्राटों की तत्कालीन सुख-समृद्धि ने सहायता देकर दूना चौगुना कर दिया। उच्चातिउच्च धार्मिक सिद्धांतों का कैसा दुरु- पयोग हो सकता है, इसका अच्छा परिचय वल्लभाचार्य की उपासना- विधि के दुरुपयोग से मिल सकता है। ऊपर जिन भक्ति-पद्धतियों का विवरण दिया गया है, घे सय भारतीय पद्धतियां हैं। पर साथ ही हम यह अस्वीकार नहीं कर सकते