पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२४

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आधुनिक भाषाएँ विषय का थोड़ा सा दिग्दर्शन यहाँ कराया जाता है। मध्यकालीन भार्य भाषाओं (पाली, प्राकृत श्रादि ) से तिडंत (साध्यावस्थापन ) क्रियाओं का लोप हो चला था। सकर्मक क्रियाओं का भूतकाल भूतकालवाची धातुज विशेपणे की सहायता से बनाया जाने लगा था। कर्म इन धातुज विशेपणे का विशेष्य होता था और कर्ता में करण की विभक्ति लगाई जाती थी। सकर्मक क्रियाओं के भूतकाल में इस प्रकार का कर्मणि-प्रयोग प्रायः सभी आधुनिक भारतीय आर्य-भापात्रों ने अपनी अपनी मूलभूत अपभ्रंशों से प्राप्त किया है। यह कर्मणि-प्रयोग बहिरंग मानी जानेवाली पश्चिमी और दक्षिणी भाषाओं अर्थात् पश्चिमी पंजावी, सिंधी, गुजराती, राजस्थानी और मराठी में जिस प्रकार प्रचलित है उसी प्रकार अंतरंग मानी जानेवाली पश्चिमी हिंदी में भी है। हाँ, पूर्वी हिंदी तथा मागधी की सुताओं ने अवश्य इसका पूर्ण रूप से परित्याग कर कर्तरि प्रयोग ही को अपनाया है। इनमें भी उन्हीं धातुज विशेषणों के रूपों में पुरुपयोधक प्रत्यय लगाकर तीनों पुरुषों के पृथक् पृथक रूप धना लिए जाते हैं। पश्चिमी पंजावी और सिंधी में इस प्रकार के प्रत्यय तो लगते हैं, पर उनमें कर्मणि-प्रयोग की पद्धति ज्यों की त्यों अक्षुण्ण है। यह इसलिये प्रतीत होता है कि क्रिया-चोधक धातुज के लिंग और वचन कर्म ही के अनुसार बदलते हैं। इन भाषाओं में इस प्रकार के प्रत्यय लगाने का कारण यह जान पड़ता है कि इनमें सप्रत्यय कर्ता का प्रयोग नहीं होता, अपितु उसका केवल विकारी अप्रत्यय रूप काम में लाया जाता है। अतः पुरुप योधन के लिये तादृश प्रत्यय लगा देना समयोजन समझा जाता है । इस विषय में इनकी पड़ोसी ईरानी भाषाओं का भी कुछ न कुछ हाथ है। मिलाइए फारसी कर्दम् (मैंने किया), पश्तो-कडम् । चाहे जैसे हो, पश्चिमी हिंदी और पश्चिमी पंजाबी श्रादि में सांसिद्धिक साधर्म्य अवश्य है। अब यदि इन भाषाओं का भेद कर सकते हैं तो यों कर सकते हैं कि पूर्वी भाषाएँ फतरिप्रयोग-प्रधान और पश्चिमी कर्मणि-प्रयोग-प्रधान होती हैं। पश्चिमी भापार (कर्मणि-प्रयोग) पश्चिमी हिंदी-मैंने पोथी पढ़ी। गुजराती--में पोथी पाँची । मराठी-मी पोथी वाचिली। सिंधी-(D) पोथी पढ़ी-मे । पश्चिमी, पंजावी-(मैं) पोथी पढ़ी-म् ।