पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२४८

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२४७ धीरगाथा काल अभी तक पुष्ट प्रमाण पर अवलंबित नहीं है। भूपण का मतिराम और चिंतामणि का भाई होना और उनका शिवाजी का समकालीन होना भ' लोकप्रसिद्ध यात है। इसके विरुद्ध जो कुछ प्रमाण दिए जायें जय तक चे असंदिग्ध न हों, तय तक इस लोक-प्रसिद्ध पात का तिरस्कार नहीं किया जा सकता। भूपण की वीर-दर्पपूर्ण रचनात्रों के देखने से ऐसा जान पडता है कि वे स्वयं अनेक युद्धों में शिवाजी के साथ उपस्थित थे और उन्होंने अपनी पाणी से पीर मराठों को प्रोत्साहित और उत्तेजित किया था। यद्यपि भूपण की अनेक रचनाओं का उल्लेख मिलता है, पर इस समय शिवराजभूपण, शिवायावनी और छत्रसालदशक ये ही तीन पुस्तके प्राप्य हैं। इनमें से शिवराजभूपए सबसे बड़ा ग्रंथ है और यह रीतिकाल फी परंपरा के अनुसार अलंकारों के उदाहरण-कम से लिखा गया है। निश्चय ही इसके छंदों की रचना भिन्न भिन्न कालों में हुई होगी, और अंत में उनका संकलन कर दिया होगा। इसी प्रकार शिवाचावनी के यावन छंद भी समय समय पर बनते रहे और पीछे से एकन कर दिए गए होंगे। छनसालदशक में धुंदेलखंड के राजपूत अधिपति छनसाल की प्रशंसा में बनाए हुए दस छंद हैं। यो तो भूपण की सभी रचनाएँ ओजस्विनी और चीरदर्प से भरी हुई है, परंतु उनकी शिवावावनी में ,उपर्युक्त गुणों की पराकाष्ठा देख पडती है। भूपण की सत्यप्रियता उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देती है। राष्ट्रीयता की जिस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने धीर कविता की, यह तो उनके प्रत्येक छंद में वर्तमान है। शिवाजी का आतंक चारों ओर फेलाने और विपक्षियों में उनकी धाक जमाने में भूषण की कविता ने बड़ा काम किया। उनकी कविताएँ बहुत शीघ्र प्रचलित हुई और उनका सम्मान भी सर्वत्र हुआ। कविता द्वारा जितनी ख्याति, जितना सम्मान और जितनां धन भूपण को मिला, उतना बहुत थोड़े कवियों को प्राप्त हुआ। राजदरवारों में उनका पडा सम्मान था। कहा जाता है, एक यार नसाल ने उनकी पालकी अपने कंधे पर रस ली. थी। श्रादर-सम्मान की यह पराकाष्ठा ही कही जायगी। मऊ (बुंदेलखंड ) निवासी गोरेलाल पुरोहित उपनाम लाल कवि का छनप्रकाश प्रवंधकाव्य के रूप में दोहा चौपाइयों में रचा गया है। मा इसमें संवत् १७६४ के उपरांत की घटनाओं का उल्लेख नहीं है जिससे जान पड़ता है कि कवि की मृत्यु उसके आश्रयदाता छत्रसाल के जीवनकाल में ही हो गई थी।