पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२५८

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२५७ योग-धारा हैं जिनकी मर्यादा की रक्षा, विचारों के सौर्य तथा स्पष्टता के लिये आवश्यक है। श्रतएव गोरखनाथ ही से हम हिंदी की योग-धारा का श्रारंम मानने को बाध्य हैं। । नागरी-प्रचारिणी सभा की रिपोर्ट में उस समय तक प्राप्त तथ्यों के आधार पर गोरखनाथ का समयविक्रम की पंद्रहवीं शताब्दीमाना गया है। डाक्टर शहीदुल्ला उनका समय पाठवीं शताब्दी मानते हैं और डाक्टर फफुहर बारहवीं शताब्दी परंतु उपलब्ध प्रमाणों को देखते हुए उनका समय ग्यारहवीं शताब्दी का मध्यभाग मानना उचित जान पड़ता है। गोरखनाथ ऐसे समय में हुए थे जय कि शंकराचार्य का अद्वैतमत बहुत कुछ प्रचार पा चुका था। शंकराचार्य का समय ८४५ से १४७ तक माना जाता है । अतएव गोरखनाथ को उनसे सौ डेढ़ सौ वर्ष बाद का मानना अनुचित नहीं । गोरखनाथ के उपलब्ध ग्रंथों की भापा भी इसी मत की पुष्टि करती है। वह न इतनी अर्वाचीन है कि पंद्रहवीं शताब्दी में रखी जा सके और न इतनी प्राचीन कि आठवीं शताब्दी में पहुँच जाय । गोरखनाथ के गुरु मछंदरनाथ ने भी हिंदी में फविता की या नहीं इसका कुछ पता नहीं। मछंदरनाथ आसाम के रहनेवाले मछुए थे। मछली मारकर अपना निर्वाह करते थे। छपरार अभ्यास से ये बड़े प्रसिद्ध योगी हुए और गोरखनाथ सरश शिप्य को पाकर यश के भागी भी हुए। 'मछंदर गोरखवोध' नाम के एक ग्रंथ में मछंदर और गोरखनाथ का संवाद दिया हुआ है। गोरखनाथ प्रश्न करते हैं और मछंदर उसका उत्तर देते हुए योग का उपदेश देते हैं। यह ग्रंथ भी मछंदर का न होकर गोरखनाथ का बत. लाया जाता है। मीननाथ के नाम से संस्कृत के कुछ ग्रंथों का उल्लेख 'केटेलोगस केटेलेगोरम' में किया गया है, परंतु ये भी मछंदरनाथ के हैं या नहीं, नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जहाँ कुछ लोग मीननाथ और मछंदरनाथ को एक मानते हैं, वहाँ कुछ ऐसे भी हैं जो उन्हें अलग अलग मानते हैं और उनके बीच में भाई भाई अथवा पिता-पुत्र का संबंध स्थापित करते हैं। मछंदरनाथ नेपाल में अधिदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। स्वयं गोरखनाथ ने हिंदी में कई ग्रंथों की रचना की। सवदी पद, अभैयात्रा जोग, संख्या दर्शन, प्राण संकली, श्रात्मवोध, मछींद्र गोरखवोध, जाती भौरांवली, गोरख-गणेश-संवाद, गोरसदत्तसंवाद, सिद्धांत जोग, मानतिलक, कंथड़वोध उनके ग्रंथ माने जाते हैं जिनमें कुछ तो-गोरख गणेश संवाद, गोरखदत्त-संवाद तथा कंथड़. बोध-स्सष्ट ही उनके नहीं जान पड़ते। ३३