पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२६०

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योग धारा चरपटनाथ-मराठी परंपराओं में चरपटनाथ गोरखनाथ के शिप्य (?) गहनीनाथ (१२८०-१३३० ) के समकालीन तथा गुरुभाई . माने गए है। गोरख शतक में वे मछंदरनाथ के पप शिप्य (१०५०) घतलाए गए हैं, और भाटिया परंपराओं में मछंदरनाथ के पिता मीननाथ के गुर और पाल राजा देवपाल (८६६-१०६ वि०)से पहले के। इनकी कविता की भापा ले इनको गहनीनाथ का समकालीन मानना ही उचित प्रतीत होता है। भोटिया परंपरा में ये चंपादेश के निवासी कहार माने गए है। परंतु भारतीय संत परंपरा में ये जाति के चारण कहे गए हैं। इनकी कविता संस्स्त चर्पटमंजरी की ही तरह प्रांजल तथा मोहक है। पता नहीं कि उसके भी रचयिता यही है कि नहीं। जो लोग योग को भोग का श्रावरणमान बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं तथा मौज के लिये योग धारण करते हैं उनको इन्होंने आड़े हाथों लिया है। योग को ये पूर्ण संन्यास प्रत मानते हैं। चुणकरनाथ भी चरपट के ही समकालीन जान पड़ते हैं। उन्होंने योग मार्ग में सिद्धि प्राप्त करने के साधन स्वरूप प्राण-वायु की घडी महिमा गाई है। चालानाथ और देवलनाय की भी थोडी सी फुटकर रचनाएँ मिलती हैं। इन्होंने योग-मार्ग में से पाखंड के निष्कासन का घडा प्रयत्न किया। इसी बात पर इन्होंने "प अपनी वाणी में जोर दिया है। वार्धक्य में इंद्रियों के थक जाने पर योग धारण करनेवालों की ये हँसी उडाते थे। ये दोनों भी तेरहवीं अथवा चोदहवीं शताब्दी के मालूम होते है। सोलहवीं शताब्दी में जायसी ने चालानाथ के टीले का उरलेख किया है। सिद्ध धूंधली और गरीबनाथ-इन गुरन्चेले का उल्लेख नेणसी ने लाखही में घोघाओं के राज्य के नष्ट होने पर जाडेचा भीम के राज्य - की स्थापना के संबंध में किया है। घोचा करन धूंधलीमल की मृत्यु का कारण गरीबनाथ का शाप बताया गया है, जो धीणोद में श्राश्रम धनाकर रहता था। जाड़ेचा भीम की विजय का कारण धूंधलीमल का आशीर्वाद कहा जाता है। भीम का १४४२ वि० में वर्तमान होना निश्चित है। इसी के श्रासपास इन दोनों गुरु-शिष्य का भी समय होना चाहिए । चालानाथ