पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२८७

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२८६ हिंदी साहित्य मिलते हैं, और अव्यक्त से विशाल प्रकृति के विरह तथा मिलन का ऐसा मर्मस्पर्शी चित्रण मिलता है कि हमारी दृष्टि लौकिक सीमा से ऊँचे उठकर उस ओर जाती देख पड़ती है जिस ओर ले जाना प्रेममार्गी संत फपियों का लक्ष्य था। यद्यपि प्रेममार्गी कवियों का उद्देश एक लौकिक कथा के प्रावरण में अलौकिक प्रेम प्रकट करना था परंतु इस उद्देश की प्रधानता देखते हुए भी हम उन कथाओं को कहीं उखड़ी हुई या अनियमित नहीं पाते। -प्रायः ऐसा देखा जाता है कि जय कथा फहने के उद्देश से भिन्न किसी अन्य उद्दश से प्रबंधरचना की जाती है, तब यह प्रबंध श्रावश्यकता- नुसार घुमा फिराकर बनाया जाता अथवा तोड़ मरोड़कर विगाड़ा जाता है। हिंदी के कवि केशवदास इसके प्रमुख उदाहरण हैं। उनकी रामचंद्रिका यद्यपि रामायण की कथा को ही लेकर चलती है परंतु उसमें प्रबंध की वह एकता नहीं है जा राम की जीवनी में थी। रामचंद्रिका के विविध पात्र जव जो इच्छा होती है कहते हैं न तो चरिच-चित्रण की श्रीर ध्यान दिया जाता है और न कथा की रचना की ओर। उसमें तो कभी राम कौशल्या को पातिव्रत्य श्रादि की शिक्षा देते हैं, कभी पंचवटी वनधूर्जटी के गुण धारण करती और कभी प्रकृति के रमणीय दृश्य प्रलयकाल को भांति भयानक देख पड़ते हैं। केशवदास का उद्देश रामायण की कथा लिखना नहीं था, अपने पांडित्य का प्रदर्शन करना था, इसी लिये जो कथा रामचरितमानस में आकर एक सर्वोत्तम प्रबंध्र के रूप में बन गई है वही रामचंद्रिका में पड़कर पूर्वापर-संबंध-रहित फुटकर पद्यों का संग्रह मात्र रह गई है। प्रेमगाथाकारों की भी यद्यपि केशवदास की सी परिस्थिति थी, उन्हें भी कथा के यहाने आध्यात्मिक तत्त्व के निरूपण की चिंता थी, परंतु केशव की भांति उन्होंने कथा का अंग-भंग कर अपनी 'हृदय-हीनता' का परिचय नहीं दिया है, वरन् बड़ी ही सरस संघटित कथाओं का सृजन किया है और उनके निर्वाह का समुचित ध्यान रखा है। उनकी यह विशेषता प्रशंसनीय है। ऐतिहासिक कथाओं में काल्पनिकता का पुट देकर यद्यपि इतिहास की दृष्टि से इन कवियों ने कुछ अन्याय किया है परंतु साहित्यिक दृष्टि से उन्हें इसके लिये भी साधुवाद ही मिलना चाहिए, क्योंकि ऐसा करके कथा में रोचकता और रमणीयता ही लाई गई है जो साहित्य के लिये गौरव की बात है। सूफी प्रेममार्गी कवियों के ग्रंथ अधिकतर प्रबंधशैली में ही लिखे गए थे अतः उनमें कथानक की रमणीयता तथा संबंध-निर्वाह की ओर