पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३१३

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. रामभक्ति शाखा . नांभाजी स्वयं बड़े भक्त और संत थे। इनकी जाति का ठीक पता नहीं। कोई इन्हें डोम बतलाते हैं और कोई क्षत्रिय। गोस्वामी तुलसीदास से इनकी भेंट हुई थी। इनका जीवनकाल लगभग १६४२ से १६८० तक रहा होगा। ये यद्यपि रामभक थे पर इनके गुरु अमदास, जिनकी प्रेरणा से इन्होंने भक्तमाल की रचना की थी, पल्लम संप्रदाय के कृष्णभक्त कवि थे। अमदास ने भी रामभक्ति की कुछ कविता की है। नाभादास की रामचरित पर एक पुस्तक अभी थोड़े दिन हुए मिली है। इसके अतिरिक्त उनके दो ग्रंथ और हैं जिनमें से एक व्रजमापा गद्य में है और दूसरा अवधी पद्य में । प्राणचंद चौहान और हृदयराम इन दोनों रामभक्त कवियों ने नाटकों की शैली में रामकथा कही है। उनके नाटक रंगशाला में खेले पलट और बट जाने योग्य नहीं है, केवल फथोपकथन के रूप में होने के कारण उनको नाटक कह दिया जाता है। फिर भी इतना अवश्य है कि रामभक्ति की कविता प्रबंध और मुक्तक काव्यों के रूप में ही नहीं लिखी गई, दृश्य काव्य की शैली पर भी लिखी गई। रामभक्ति से हिंदी कविता को जितनी व्यापकता और विस्तार मिला, कृष्णभक्ति से उतना नहीं। कृष्णभक्ति की कविता तो अधिक- तर गोत काव्यों की शैली पर ही लिखी गई। प्रागचंद ने संवत् १६६७ में रामायण महानाटक लिखा और हृदयराम ने संवत् १६८० में संस्कृत हनुमन्नाटक के आधार पर हिंदी हनुमन्नाटक की रचना की। इन दोनों में हृदयराम की रचना अधिक •प्रीढ़ और प्रसिद्ध हुई। रामभक्ति की एक शाखा हनुमानमक्ति के रूप में भी स्फुरित हुई। गोस्वामी तुलसीदास का हनुमानवाहुक महावीरजी की स्तुति में लिखा गया था। इस प्रकार की पुस्तकों में रायमाल पांडे का लिखा हनु- मचरित्र (१६६६) कुछ प्रसिद्ध है। __ यहाँ हम केशवदास की रामचंद्रिका तथा इस श्रेणी की अन्य पुस्तकों का उल्लेख नहीं करते, क्योंकि इनके रचयिता रामभक्त नहीं थे और इनके काव्य भी भक्तिकान्य नहीं कहे जा सकते। रामोपासक कवियों में महाराज विश्वनाथसिंह और महाराज विश्वनाथ सिंह और रघुराजसिंह का नाम भी लिया जाता है। ये खराजसिंह दोनों ही रीवानरेश रामभक्त थे, परंतु महाराज विश्वनाथसिंह निर्गुण भक्ति की ओर भी झुके थे और कवीर आदि पर आस्था रखते थे। विश्वनाथसिंह ने कितने ही