पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/३६१

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३६१ आधुनिक काल श्रालंघन न बनकर उद्दीपन मान रह गए थे। वाल्मीकि रामायण के वर्षा और शरऋतुं के वर्णनों में प्रकृति के विविध दृश्य जिस संश्लिष्ट रूप में खींचे गए हैं, उससे कवि का सूक्ष्म निरीक्षण तो भासित होता ही है साथ ही उसका प्रकृति के प्रति निसर्गसिद्ध अनुराग भी लक्षित होता है । उन वर्णनों में प्रतिभालंयन है और कवि श्राश्रय। उपमा, उत्प्रेक्षा श्रादि अलंकारों की सिद्धि के लिये अलंकार-वस्तुओं का उल्लेखमात्र करनेवाले कचियों और प्रकृति को सजीव सत्ता मानकर उससे अंतःकरण की श्रात्मीयता स्थापित करनवाले कवियों में बड़ा अंतर होता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रकृति-वर्णन यद्यपि विविध वस्तुओं की योजना की दृष्टि से रीतिकाल के कवियों से अधिक सुंदर और हृदयग्राही हुश्रा है; पर उसके साथ उनके भावों का संबंध विशेष गहन और अविच्छिन्न नहीं जान पड़ता। हरिश्चंद्र स्वयं नागरिक थे, प्रकृति की मुक्त विभूति का जो अनंत प्रसार नगरों के बाहर व्याप्त है, उसका साक्षात्कार उन्होंने कम किया था। इसके अतिरिक्त वे समाज-सुधारक श्रादि भी थे, जिसके कारण उन्हें अपनी दृष्टि मनुष्य के बनाए हुए सामाजिक धेरे में ही रख छोड़ने को बाध्य होना पड़ा था। परंतु हिंदी कविता के उस परिवर्तनकाल में हरिश्चंद्र जैसे महान् व्यक्ति को देखकर हम चकित हुए विना नहीं रह सकते। यह ठीक है कि शुद्ध काव्य-समीक्षा की दृष्टि से उनकी रचनाएँ सूर और तुलसी की कोटि को नहीं पहुँचती, और यह भी ठीक है कि कवीर, जायसी श्रादि कवियों की वाणी की समता भी वे नहीं कर सकते; पर इससे उनका महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं होता। रीति-कविता की शताब्दियों से चली पाती हुई गंदी गली से निकल शुद्ध वायु में विचरण करने का श्रेय हरिश्चंद्र को पूरा पूरा प्राप्त है। वे और उनके साथी बड़े ही सह- दय व्यक्ति थे जिन्हें अपनी धुन में मस्त रहना श्राता था। मौलिक साहित्यकारों में हरिश्चंद्र का स्थान हिंदी में वरावर ऊँचा रहेगा। वे प्रेमी जीव थे, पर उनका देश-प्रेम भी अतिशय प्रयल था। यह स्वीकार करते हुए भी कि व्यापकता और स्थायित्व की दृष्टि से विशेष उत्कृष्ट श्रेणी के साहित्य की उन्होंने सृष्टि नहीं की। हमको यह मानना पड़ेगा कि मुक्तक रचना में जातीयता के भावों को सफलतापूर्वक भरकर उन्होंने हिंदी कविता का अपार उपकार किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र का वास्त- विक महत्त्व परिवर्तन उपस्थित करने में और साहित्य को शुद्ध मार्ग से ले चलने में है, उश्च कोटि की काव्य-रचना करने में उतना नहीं है। परिवर्तन उपस्थित करने का महत्त्व कितना अधिक होता है और इस