पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/४९

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हिंदी भापा मार्ग पर चलकर हिंदी ऊँचा सिर किए हुए भागे बढ़ रही है। इस समय साहित्यिक हिंदी संस्कृतनगमित हो रही है। परंतु श्रच राष्ट्रीय आंदोलन में मुसलमानों के धा मिलने से तथा हिंदुओं के उनका मन रसने की उद्विग्नता के कारण एक नई स्थिति उत्पन्न हो गई है। वही राष्ट्रीयता, जिसके कारण पहले शुद्ध हिंदी का नांदोलन चला था, अव मिश्रण की पतपातिनी हो रही है और अपनी गौरवान्वित परंपरा को नष्ट कर राजनीतिक स्वर्गलाम की धाशा तथा श्राकांक्षा करती है। अब प्रयत्न यह हो रहा है कि हिंदी और उर्दू में लिपिमेद के अतिरिक्त और कोई भेद न रह जाय और ऐसी मिश्रित भाषा का नाम हिंदुस्तानी रसा जाय। हिंदी यदि हिंदुस्तानी बनकर देश में एकच्छत्र राज्य कर सके तो नाम और वेश-भूपा का यह परिवर्तन महँगा न होगा, पर आशंका इस बात की है कि श्रध्रुव के पीछे पड़कर हम ध्रुप को भी नष्ट न कर दें। इस एकता के साथ साथ साहित्य और घोलचाल तथा गद्य और पद्य की भापा को एक करने का उद्योग वर्तमान युग की विशेषता है। ऊपर जो कुछ लिखा गया है, उसका विशेप संबंध साहित्य की भाषा से है। चोलचाल में तो अब तक अवधी, ब्रजभाषा और खड़ी बोली अनेक स्थानिक भेदों और उपभेदों के साथ प्रचलित हैं। पर साधारण बोलचाल की भाषा खड़ी बोली ही है।