पहला अध्याय
भारतवर्ष की प्राचीन भाषाएँ
संसार में जितनी भाषाएँ हैं, उन सवका इतिहास बड़ा ही मनो- रंजक तथा चित्ताकर्षक है, परंतु जो भापाएँ जितनी ही अधिक प्राचीन विषय-प्रवेश होती हैं और जिन्होंने अपने जीवन में जितने १ अधिक उलट फेर देखे होते हैं, वे उतनी ही अधिक मनोहर और चित्ताकर्षक होती है। इस विचार से भारतीय भापानों का इतिहास बहुत कुछ मनोरंजक और मनोहर है। भारतवर्प ने आज तक कितने परिवर्तन देखे हैं, यह इतिहास-प्रेमियों से छिपा नहीं है। राज- नीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों का प्रभाव किसी जाति की स्थिति ही पर नहीं पड़ता, अपितु उसकी भापा पर भी बहुत कुछ पड़ता है। भिन्न भिन्न जातियों का संसर्ग होने पर परस्पर भावों और उन भावों के द्योतक शब्दों का आदान-प्रदान होता है, तथा शब्दों के उच्चारण में भी कुछ कुछ विकार हो जाता है। इसी कारण के वशीभूत होकर भाषाओं के रूप में परिवर्तन हो जाता है और साथ ही उनमें नए नए शब्द भी पा जाते हैं। इस अवस्था में यदि वृद्ध भारत की भाषाओं की प्रारंभ की अवस्था से लेकर वर्तमान अवस्था तक में आकाश पाताल का अंतर हो जाय, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अव यदि हम इस परिवर्तन का तथ्य जान सके, तो हमारे लिये वह कितना मनोरंजक होगा, यह सहज ही ध्यान में पा सकता है। साथ ही भाषा अपना भाव- रण हटाकर अपने वास्तविक रूप का प्रदर्शन उसी को कराती है, जो उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित होने का अधिकारी है। इस प्रकार का अधिकार उसी को प्राप्त होता है जिसने उसके विकास का क्रम भली भांति देखा है। ___ भाषाओं में निरंतर परिवर्तन होता रहता है जो उनके इतिहास को और भी जटिल, पर साथ ही मनोहर, बना देता है। भापाओं के विकास की साधारणतः दो अवस्थाएँ मानी गई हैं-एक वियोगावस्था और दूसरी संयोगावस्था। वियोगावस्था में सब शब्द अपने अपने वास्तविक या प्रारंभिक रूप में अलग अलग रहते हैं और प्रायः वाक्यों में उनके श्रासत्ति, योग्यता, आकांक्षा अथवा स्वराघात से उनका पारस्परिक •