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पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/१०

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एक दूसरे स्थान पर उक्त फ़रासीस विद्वान जैकोलिअट यह लिखते हैं—

"भारत संसार का मूल-स्थान है, इस सार्वजनिक माता ने अपनी सन्तानको नितान्त पश्चिम ओर भी भेजकर हमारी उत्पत्ति सम्बंधी अमिट प्रमाणों में, हमलोगों को अपनी भाषा, अपने कानून, अपना चरित्र, अपना साहित्य और अपना धर्म प्रदान किया है।" पृ॰ ७४

मिस्टर म्यूर कहते हैं—

"जहांतक मैं जानता हूं, किसी भी संस्कृत पुस्तक में, अत्यन्त प्राचीन पुस्तक में भी भारतीयों की विदेशी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख या संकेत नहीं है" पृ॰ १८२[]

मोशियोलुई जैकोलिअट एक दूसरे स्थान पर यह लिखते हैं—

'योरप की जातियां भारतीय उत्पत्ति की हैं, और भारत उनकी मातृभूमि है, इसका अखण्डनीय प्रमाण स्वयम् संस्कृत भाषा है। वह आदिम भाषा (संस्कृत) जिससे प्राचीन और अर्वाचीन मुहावरे निकले हैं। 'पुरातन देश (भारत) गोरी-जातियों का उत्पत्ति स्थान था, और जगत का मूल स्थान है'। पृष्ट २७३

गंगा मासिक पत्रिका के पुरा तत्वांक में जो माघ सम्वत् १९८९ में निकली है, डाक्टर अविनाशचन्द्र दास एम॰ ए॰, पी॰ एच॰ डी॰ का एक लेख आर्य्यों के निवास-स्थान के विषय में निकला है, उसमें एक स्थान पर वे यह लिखते हैं—

"आधुनिकनृतत्ववित् पाश्चात्य पण्डितों का मत है कि वर्त्तमान पंजाब और गांधार देश मानव-जाति का उत्पत्ति-स्थल है। प्रसिद्ध नृतत्ववित् अध्यापक सर आर्थर कीथ का मत है कि भारत के उत्तर पश्चिम, सीमान्त प्रदेश में मानव-जाति की उत्पत्ति हुई है। दूसरे नृतत्ववित् अध्यापक


  1. That is so far as I know none of the Sanskrit books not even the most ancient contain any distinct reference or allusion to the foreign origin of the Indians. Muir's Sanskrit text book vol. 2 P. 323.