पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/९

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परिशिष्ट।

इस ग्रंथ के पृष्ट १३ में मैंने यह प्रतिपादन किया है, कि आर्य-जातिका मूल निवास-स्थान भारतवर्ष ही है, वह किसी दूसरे स्थान से न तो आई है, और न वह उसका उपनिवेश है। इसकी पुष्टि के कुछ और प्रमाण नीचे लिखे जाते हैं—

विद्वद्वर श्रीनारायण भवनराव पावगी मराठी भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् हैं, उन्हों ने अंगरेज़ी में एक गवेषणापूर्ण ग्रंथ लिखा है, उसका नाम है 'दि आर्यावर्टिक होम एण्ड दि आर्यन क्रेडल इन दि सप्टसिंधु'। इस ग्रंथका अनुवाद हिन्दी भाषा में हो गया है, उसका नाम है 'आर्य्यों का मूल स्थान', उसके कुछ अंश ए हैं—

'एम॰ लुई जैकोलिअट लिखते हैं, भारत संसार का मूल स्थान है, वह सब की माता है। 'भारत, मानव-जाति की माता, हमारी सारी परम्पराओं का मूल स्थान प्रतीत होता है, इस प्राचीन देशके सम्बन्ध में, जो गोरी-जाति का मूल-स्थान है, हमने सत्य बात का पता पाना प्रारंभ कर दिया है। पृष्ट ३५

फ़रासीस विद्वान् क्रूज़र स्पष्ट शब्दों में लिखते हैं—

"यदि पृथ्वी पर ऐसा कोई देश है, जो मानव-जाति का मूल-स्थान या कमसे कम आदिम सभ्यता का लीलाक्षेत्र होने के आदर का दावा न्यायतः कर सकता है, और जिसकी वे समुन्नतियां और उसमें भी परेविद्याकी वे न्यामतें जो मनुष्य जाति का दूसरा जीवन हैं, प्राचीन जगत के सम्पूर्ण भागों में पहुंचाई गई हैं, तो वह देश निस्सन्देह भारत है" पृष्ट ७३