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आपको असमर्थ देखकर मुसल्मानों की ओर मेल और प्रेम का हाथ बढ़ा रहे थे। हम देखते हैं कि ठीक जिस समय मुहम्मदबिन क़ासिम की विजयी सेना नयरूँ नगर में पहुँचती है उस समय वहां के निवासियों ने अपने बौद्ध पुजारियों को उपस्थित किया था। उस समय पता चला था कि इन्होंने अपने विशेष दूत इराक़ के हज्जाज़ के पास भेजकर उससे अभय दान प्राप्त कर लिया था, इसलिये नयरूं के लोगों ने मुहम्मद का बहुत अच्छा स्वागत किया। उसके लिये रसद की व्यवस्था की, अपने नगर में उसका प्रवेश कराया और मेल के नियमों का पूरा पूरा पालन किया। इसके बाद जब इस्लामी सेना सिन्ध की नहर को पार करके सदउसान पहुँचती है तब फिर बौद्धलोग शान्ति के दूत बनते हैं। इसी प्रकार सेवस्तान में होता है कि बौद्धलोग अपने राजा विजयराम को छोड़कर प्रसन्नता पूर्वक मुसल्मानों का साथ देते हैं और उनका मान हृदय से करते हैं।" ऐसा जान पड़ता है कि जब सिन्ध के बौद्धों ने एक ओर मुसल्मानों को और दूसरी ओर ब्राह्मणों को तौला तब उन्हें मुसल्मान अच्छे, जान पड़े। दूसरा कारण यह हो सकता है कि इससे पहले तुर्किस्तान और अफ़गानिस्तान के बौद्धों के साथ मुसल्मानों ने जो अच्छा व्यवहार किया था और उनमें से बहुत अधिक लोगों ने जिस शीघ्रता से इस्लामधर्म ग्रहण किया था उसका प्रभाव इस देश के बौद्धों पर भी पड़ा था।"
सिन्ध पर अधिकार होने के बाद अरब विजेताओं ने भारत के विभिन्न प्रान्तों पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। इस कारण से उस समय भारत का कुछ उत्तरीय और दक्षिणी प्रान्त रणक्षेत्र बन गया और ऐसी अवस्था में आक्रमित प्रान्तों में युद्धोन्माद का आविर्भाव होना स्वाभाविक था। ये झगड़े नवीं और दशवीं शताब्दी में उत्तरोत्तर वृद्धि पाते रहे। इसीलिये हिन्दी साहित्य की अधिकांश आदिम रचनायें वीर-गाथाओं से ही सम्बन्ध रखती हैं। इन दोनों शताब्दियों में जितने साहित्य-ग्रन्थ रचे गये उनमें से अधिकतर में रण-भेरी-निनाद ही श्रवणगत होता है। खुमानरासो आदि इसके प्रमाण हैं। वीर गाथाओं का काल आगे भी बढ़ता है और तेरहवीं शताब्दी तक पहुंचता है। कारण इसका